पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१३१

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द्वितीय कोशमान : परमाणु अब यह सगब्द होते हैं तो सप्त-अष्ट-नवद्रव्यक होते हैं। उक्त कल्प होने से हम पुनः विस्तार ने व्याख्यान नहीं करते हैं। ७. भालेप-वैभाषिक कहते हैं कि कामयातु का परमाणु कम से कम अष्टद्रव्यफ होता है। या उनका अभिप्राय उन द्रव्यों से है जो मुख्यवृत्या द्रध्य हैं (द्रव्यमेव), जिनका स्वलक्षण है। अश्या आयतन अभिप्रेत हैं जिन्हें द्रव्य कह सकते हैं क्योंकि उनका सामान्य-विशेष लक्षण है ?" -प्रयम पन में मंत्र्या अत्यल्प है। आप कहते हैं कि परमाणु में चार उपादायल्प होते हैं। प्रयम का है :हम कहते हैं कि परमाणु इसमें न केवल वर्णरूप (वर्ण, नील या लोहित द्रव्य, आदि) [१४८] है किन्तु संस्थानल्य (१.१०,४.३ सी) भी है क्योंकि वहां कई अणुओं का संघात है । इसमें 'स्त्रप्टव्य' नामक भौतिक रूप का सदभाव है हम कहते हैं कि यह गुरु या लघु, कर्कग या इलक्ष्य होगा; इनमें गीत, जिघत्सा, पिपासा की संभावना है। अतः इसमें गुरुत्व या लघुत्व, लक्ष्णत्व या कर्कशत्य, गीत, जियत्मा की पिपासा नामक द्रव्य होंगे (१.१० डी)। अतः प्रस्ता- वित संख्या अत्यल्प है। इसके विपरीत यदि वैभाषिक का अभिप्राय बायतनों में है ती संख्या अति बहु है क्योंकि महाभूत स्त्रप्टव्यायतन में (१.३५ ए) संगृहीत हैं। अतः यह कहना चाहिए कि परमाणु चनुव्यफ है-रूप, गन्ध, रस, अष्टव्य । वैभाषिक उत्तर देता है-परमाणु का हमारा लक्षण सुप्फु है । द्रव्य शब्द का अर्थ ययायोग मुल्यवृत्या द्रव्य और नायतन है । संघातपरमाणु के ८ द्रव्यों में (१) चार मुल्यवृत्या द्रव्य अर्थात् चार महाभून है जो भौतिक रूप के आत्रयभूत हैं, (२) चार आयतन है जो महाभूतों के आश्रयीभूत, चार प्रकार के नीतिक रूप है : रूप, गन्ध रस और स्पष्टव्य (न्याटव्यायतन से आधयभूतों को निकृष्ट कर) । उत्तर युक्त नहीं है क्योंकि इन चार भौनिक रूपों में से प्रत्येक का आश्रय भृतचतुष्क है । भातः संघातपरमाणु में २० द्रव्य होंगे ।' यस्य स्वलक्षणमस्ति तद्व्यम् । नील एक द्रव्य है । व्या० १२५.३१] सामान्यविशेपलक्षणसभावात् [या० १२५.३२] रूप में प्रतिघात का स्वभाव है (रुप्यते) जो वर्ण, संस्थान, नीलादि को सामान्य है। हमने देखा है (१.१३, पृ. २५) फि एफ अपरमाणु अकेला नहीं रहता। जापानी संपादक इस विषय में ही-ही की ६ अध्याय को दीका का उद्धरण देते है । एम० पी० पेलिनो ने इस उद्धरण यो तातो ८३.५, फोलिओ ४१४ में पाया है। इनके नाप में एक विति है जो रूपादि संघातपरमात्र के लिए १३७१ परमाणु व्यवस्थित करती है। इन विकृतियों का भयंत प्रकार है किन्तु उनमें भूल हो सकती है। द्रव्यपरमाण, अफेला नहीं रहता । राम ने फन ७ द्रव्यों का संघात होता है: चार पाई- जन तल अनि ६ पादर्य और नथ्य अतः सात । यदि भौतिक स्पफा (महानतान्युपादाय रूपम्) या गाव या गन्य के मंशपरमाणु का विचार करें तो रप या गन्य के सान द्रव्य होने इन सात बच्चों में से प्रत्येक भात दर-समुदाय का पासपोभून होता है । इन मात द्रव्यों का बनाव नूतननुष्क का होता है । यह यह नाना है जहां मतवतुक या मन्नित्य होता है। ४ ६