पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१३३

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द्वितीय कोशस्थान: चैत संस्कृत धर्मों में जो सत्वाख्य (सत्वसंख्यात, १.१०) हैं वह अवश्य अपनी अपनी प्राप्ति (२. ३७ बी) के साथ उत्पन्न होते हैं। अन्य की प्राप्ति नहीं होती। अतः कारिका में 'वा' शब्द विकल्प के अर्थ में कहा है। चैत्त क्या हैं ? २ मान को ए. वसुबन्धु और सौत्रान्तिकों के अनुसार चैत्तों का वाद । बी. प्रकरणपाद और धातुकाय सी. अभिधम्म ए. विज्ञप्तिमात्रशास्त्र की टोकर कहती है कि सौत्रान्तिकों में दो सिद्धान्त हैं। एक अर्थात् दान्तिक का मत है कि केवल चित्त का अस्तित्व है, चैत्तों का अस्तित्व नहीं है। बुद्धदेव से इनका एकमत्य है (१.३५ टिप्पणी देखिए)। दूसरे स्वीकार करते हैं कि चैत्तों का अस्तित्व है किन्तु उनमें अवान्तर भेद हैं : कुछ तीन चैत मानते हैं : वेदना, संज्ञा, चेतना कुछ चार (स्पर्श को जोड़कर), कुछ १० (दस महाभूमिक), कुछ (लोभ, द्वेष, जोड़कर) मानते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ सौत्रान्तिक सर्वास्तिवादियों के सब चैत्त मानते हैं। (वैसिलीफ पु. ३०९ को सूचनाएँ भिन्न हा भट्टोपम के स्थान में 'भदन्त सौत्रान्तिक' पढ़िए)। वैसिलीक, २८१ % ३०९ कहते हैं: "सौत्रान्तिकों में भदन्त दार्शन्तिक (अर्थात् "भवन्त", १.३६) वेदना, संज्ञा और चेतना को द्रव्य मानते हैं किन्तु भदन्त बुद्धदेव में स्पर्श और मनसिकार अधिक हैं . . . । भदन्त दान्तिक श्रीलात... । चत्तों के प्रश्न पर कोत्रा, १.६४,८.१५९, ९.२५२, सिद्धि, ३९५, काम्येडियम, १२ भी। २.२६ सी-डी; ३ ३२ ए-बी देखिए। पंचस्कन्धप्रकरण में (नजियो, ११७६ एमडिओ ५८) वसुबन्धु ने चैत्तों के अपने वाद का ध्याख्यान किया है।--चत्त क्या है ? चित्त संप्रयुक्त धर्म अर्थात् (१) ५ सर्वग : स्पर्श मनस्कार, वेदना संजा, चेतना । (२) ५ प्रतिनियत विषय : छन्द, अधिमुक्ति, स्मृति, समाधि, प्रज्ञा । (३) ११ कुशलः श्रद्धा, हो, अपत्राप्य, अलोभ-कुशलमूल, अद्वेष कुशलमूल, अमोह कुशलमूल, वीर्य, प्रश्रधि, अप्रमाद, उपेक्षा, अहिंसा । (४) ६ क्लेश : राग, प्रतिच, मान, अविद्या, दृष्टि, विचिकित्सा । (५) शेष उपक्लेश हैः क्रोध, उपनाह, बृक्ष, प्रदास, ईपर्या, मात्सर्य, माया, शाठ्य, मद, विहिंसा, आह्रीक्य, अनपत्राप्य, स्त्यान, औद्धत्य, आश्रद्धध कौसीद्य, अप्रमाद, मुषितस्मृतिता, विक्षेप, असंप्रजन्य । (६) चार अस्थिर स्वभाव के । कौकृत्य, मिद्ध, वितर्क, विचार । वी.प्रकरणपाद (ग्रन्थ का आरम्भ) के अनुसार : ५ धर्म हैं: १. रूप २. चित्त, ३. चैत्तधर्म, ४. चित्त विप्रयुक्त संस्कार, । ५. असंस्कृत. चित्त क्या है ? यह चित्त, मनस्, विज्ञान अर्थात् चक्षुर्विज्ञान आदि विज्ञान काय हैं । चैत्त क्या है ? चित्तसंप्रयुक्त सर्वधर्म । यह धर्म क्या है ? अर्थात् वेदना, संज्ञा, चेतना, स्पर्श, मनसिकार, छन्द, अधिमुक्ति, स्मृति, समाधि, प्रज्ञा, श्रद्धा, वीर्य, वितर्क विचार, प्रमाद, अप्रमाद, कुशलमूल, अकुशलमूल, अव्याकृतमूल, सव संयोजन, अनुशय, उपक्लेश, पर्यवस्थान (५.४७), सर्वज्ञान (७.१), सर्वदृष्टि, सर्वाभिसमय (६:२७) और इस जाति के सब धर्म जो चित्त से संप्रयुक्त हैं चैत्त हैं। आगे चल कर (चतुर्थ अध्याय के आरंभ में, २३.१०, फोलिओ१८ बी = धातुकाय, आरंभ): "१८ धातु १२ आयतन, ५ स्कन्ध, ५ उपादानस्कन्ध, ६ धातु, १० महाभूमिक, १० कुशल- महाभूमिक, १० क्लेशमहाभूमिक, १० परीत्तक्लेशभूमिक, ५ क्लेश, ५ संस्पर्श, ५ दृष्टि, ५ इन्द्रिय, ५ धर्म, ६ विज्ञानकाय, ६ स्पर्शकाय, ६ वेदनाकाय, ६ संज्ञाकाय, ६ चेतनाकाय, ६ तृष्णाकाय-१८ धातु क्या हैं ?. ६ धातु क्या हैं ? अर्थात् पृथिवीधातु...