पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१३६

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१२२ अभिधर्मकोश [१५४] २. चेतना वह है जो चित्त का अभिसंस्कार, चित्त का प्रस्यन्द (१.१५, ४.१) करती है। ३. संज्ञा संज्ञान है जो विषय-निमित्त (पुरुष, स्त्री आदि) का ग्रहण करता है (विषयनि- मित्तग्रहण-विषयविशेषरूपन्नाह) (१.१४; २.३४ वी-डी, पृ. १७७ टिप्पणी ५) । ४. छन्द कार्य की इच्छा है । ५. स्पर्श इन्द्रिय, विषय और विज्ञान के संनिपात से संजात स्पृष्टि है। अन्य शब्दों में यह वह धर्म है जिसके योग से (यद्योगात्) इन्द्रिय, विषय और विज्ञान अन्योन्य का मानों स्पर्श करते हैं (३.३०) । ६. प्रज्ञा जिसे कारिका में 'मति' कहा है धर्मों का प्रविचय है (१-२) ७, स्मृति (२.१६२, ६.२५८) आलम्बन का असंप्रमोष है। यह वह धर्म है जिसके योग से मन आलंबन को विस्मृत नहीं करता, जिसके योग से मानों यह उसकी अभिलाषा करता है (अभिलपतीय व्या० १२७.३३]) । ८. मनस्कार चित्त का आभोग है : दूसरे शब्दों में यह आलम्बन में चित्त का आवर्जन, अवधारण है (आलम्बने चेतस आवर्जनम् अवधारणम् [व्या १२८.१]) ! मनस्कार का नि- वचन इस प्रकार करते हैं : मनसः कारः अथवा मनः करोति आवर्जयति । व्या०१२८.१] (२.७२) । मनस्कार-चेतस आभोग आलम्बने चित्तधारणधर्मकः ( अभिसमय)।. ९. अधिमुक्ति आलम्बन के गुणों का अवधारण है । ५ २ 3 ४ ५ १ अस्थसालिनी , ३२९ से तुलना कीजिए : कतुकम्यता--पंचस्कन्धक के अनुसारः अभिप्रेते दस्तुनि अभिलाषः (२.५५ सी-डी, ३.१ देखिए जहाँ 'छन्द' का लक्षण 'अनागते प्रार्थना' दिया है)। पंचस्कन्धकः उपपरीक्ष्ये वस्तुनि प्रविचयो योगायोगविहितोऽन्यथा च । पंचस्कन्धकः संस्तुते वस्तुन्यसंप्रमोषः। चेतसोऽभिलपनता--१.३३ देखिए। आभोग पर एस० लेवी सूत्रालंकार, १.१६ और मूसों १९१४ देखिए। यह शब्द कठिनाई उत्पन्न करता है---व्याख्या अधिमुक्तिस्तदालम्बनस्य गुणतोऽवधारणाद् [च्या० १२८.२] (णम् ?) रुचिरिति अन्ये । यथानिश्चयं धारणेति योगाचारचित्ताः "अधिमुक्ति आलम्बन के गुणों का अवधारण है। दूसरों के अनुसार यह रुचि है। योगाचारों के अनुसार यह यथानिश्चय आलम्वन की धारणा है।" (२.७२ में, अधिमुक्ति मनस्कार के अधिकार में इस अन्तिम बात का व्याख्यान है।) पंचस्वाधक के अनुसार अधिमोक्ष=निश्चिते वस्तुन्यवधारणम् । प्रकरणपाद, १३ वी, ९ के अनुसार : "अधिमुक्ति क्या है ? वेदना और स्पर्श में चित्त का हमारे भाप्य के तिब्बती भाषान्तर में अधिमुफ्तिरिच्छा' या रचिः (?)। परमार्थ का अनुवादः "अधिमुक्ति एक धर्म है जिसके योग से चित्त आलम्बन के लक्षणों के प्रति पटु होता है ।"--यह अनुवाद नहीं है किन्तु विवृति है। शुआन-चाड का अनुवादः "अघिमुक्ति (नेगयु किंग इन को) है जिसके योग से आल: म्बन के प्रति गुणावधारण फी सूचना होती है ।" इन (= मुद्रा) को (संभव) को कई आस्वाद। 1