पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१४३

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द्वितीय कोशस्थान:चत्त १२९ मनस्कार और अधिमुक्ति महाभूमिक और क्लेशमहाभूमिक दोनों हैं; ४. इन आकारों को स्थापित कर अन्य धर्म (कुशलमहाभूमिक आदि) न महाभूमिक हैं, न क्लेशमहाभूमिक हैं। कुछ आचार्यों (विभाषा, ४२, १७) का मत है कि विक्षेप मिथ्या-समाधि नहीं है। उनके अनुसार अन्यथा चतुष्कोटिक है: वह द्वितीय कोटि में विक्षेप को प्रक्षिप्त करते हैं और तृतीय से समाधि को निराकृष्ट करते हैं। २. यह जो कहा कि “मूल अभिधर्म में क्लेशमहाभूमिकों में स्त्यान पठित नहीं है", तो हम कहते हैं कि स्त्यान' इष्ट है (इष्यते) क्योंकि इसका सर्वक्लेश से संयोग होता है। यदि स्त्यान का अपाठ है तो यह किसका अपराध है, मेरा या अभिधर्मकार का (आभि- धार्मिक = अभिधर्मकार)? आभिधार्मिक स्त्यान के अपाठ का कारण है : स्त्यान का उल्लेख होना चाहिए था; यह [१६४] पठित नहीं है क्योंकि यह समाधि के अनुगुण है। वास्तव में उनका कहना है कि स्त्यान चरित पुद्गल औद्धत्यचरित पुद्गल की अपेक्षा समाधि का संमुखीभाव क्षिप्रतर करता है । किन्तु औद्धत्य के विना कौन स्त्यानचरित है ? स्त्यान के विना कौन औद्धत्यचरित है ? स्त्यान और औद्धत्य कभी सहचरधर्मता का त्याग नहीं करते। हाँ, स्त्यान और औद्धत्य सहचरिष्णु हैं। तथापि जो जिस पुद्गल का अधिमात्र होता है तच्चरित वह पुद्गल कहलाता है । जिस पुद्गल में स्त्यान का अधिमात्र है वह स्त्यानचरित कहलाता है यद्यपि उसमें औद्धत्य भी है। १ एवं तु आहुः---आभिधार्मिकाः व्या० १३१.२३] मेरा विश्वास है कि बहुवचन (आहुः) के प्रयोग से वसुबन्धु यहाँ धर्मत्रात को जो नैजियो १२८७ का ग्रंथकार है और उसके अनुयायियों को प्रजप्त करते हैं । आगे के परिच्छेदों से (नजियो १२८७ चैप० २.५और साल० = २३, १२, २८ वी)यह परिणाम निकलता है : .क्लेशमहाभूमिकों का व्याख्यान करना चाहिये। २.५. मिथ्याधिमोक्ष, असंप्रजन्य, अयोनिशोमतस्कार, अश्राद्धय, कौसीध, विक्षेप, अविद्या, औद्धत्य, प्रमाद। मिथ्याधिमोक्ष से यह समझना चाहिये. २.६. १० क्लेशमहाभूमिक सर्वक्लिष्ट चित्त में पाये जाते हैं। अहो और अत्रया अकुशल- महाभूमिक कहे गये हैं। १० क्लेशमहाभूमिक सर्वक्लिष्ट चित्त में पाये जाते हैं। मिथ्याधिमोक्षादि १० धर्म सर्वत्रिलष्ट- चित्त सहगत होते हैं। कामधातु, रूपधातु, आरूप्यधातु के ५ विज्ञानकाय और मनोविज्ञान सहगत होते हैं । अतः वह क्लेशमहाभूमिक हैं--प्रश्न : स्त्यान सर्वक्लिष्ट चित्त में पाया जाता है। यह क्लेशमहाभूमिकों में क्यों परिगणित नहीं होता ?--उत्तर : क्योंकि यह समाधि के अनुकूल है । अर्थात् स्त्यानचरित पुद्गल क्षिप्रता के साथ समाधि का संमुखीभाव करता है । अतः स्त्यान सूची में पत्ति नहीं है । या महाभूमिक धर्म क्लेशमहाभूमिक भी है ? चार कोटि हैं : १. महाभूमिक बिना क्लेशमहाभूमिक हुए...... १ आचार्य इस मत को ग्रहण नहीं करते । स्त्यान (लय) और औद्धत्य जो क्लिष्ट धर्म हैं समावि शुक्ल धर्म के परिपत्यी हैं। नासक ९