पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१५३

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द्वितीय कोशस्यान :चंत उत्पाद करता है जिसे मद कहते हैं। उसी प्रकार पुद्गल का स्वधर्म में अनुराग है। हम चित्त (१.१६) और चैत्त का वर्णन कर चुके हैं। हमने बताया है कि किस प्रकार में कौन चैत्त व्यवस्थापित होते हैं, कितनी संख्या में उनका सहोत्पाद होता है और उनका स्वलक्षण और परस्पर विशेषण क्या है। शास्त्र में चित्त-चैत्त के भिन्न नाम हैं। चित्तं मनोऽथ विज्ञानमेकायं चित्तचेतसाः। साश्रयालम्बनाकाराः संप्रयुक्ताश्च पंचधा ॥३४॥ ३४ ए-बी. चित्त, मनस्, विज्ञान, यह नाम एक अर्य के वाचक हैं। [१७७] जो संचय करता है (चिनोति) वह चित्त है। यही मनस् है क्योंकि यह मनन करता है (मनुते) १२ यही विज्ञान है क्योंकि यह अपने आलम्बन को जानता है (आलम्बनं विजानाति)। कुछ कहते हैं : चित्त'चित्त' कहलाता है क्योंकि यह शुभ-अशुभ धातुओं से चित्रित (चित्र) है। क्योंकि यह अपर चित्त का आश्रयभूत है इस लिये यह मन (१.१७) है । क्योंकि यह इन्द्रिय और आलम्बन पर आश्रित है-इस लिये विज्ञान है। अतः इन तीन नामों के निर्वचन में भेद है किन्तु यह एक ही अर्य को प्रज्ञप्त करते हैं। यया ३४ वी-डी. चित्त और चैत्त साश्रय, सालम्बन, साकार और संप्रयुक्त हैं। साश्रयादि यह चार भिन्न नाम एक ही अर्थ को प्राप्त करते हैं। चित्त-चत्त 'साश्रय' कहलाते हैं क्योंकि वह (चक्षु....मन-इन्द्रिय) इन्द्रिय पर आश्रित हैं। वह 'सालम्बन' (१.३४) हैं क्योंकि वह स्वविषय का ग्रहण करते हैं। वह 'साकार' हैं क्योंकि वह आलम्बन के प्रकार से ५ आकार ग्रहण करते हैं। वह संप्रयुक्त है क्योंकि वह बन्योन्य सम और मविप्रयुक्त हैं। १ ४ अर्यात् मद "क्लिष्ट सौमनस्य वेदना है। वैभाषिक इस अर्थ को नहीं स्वीकार करते : वास्तव में द्वितीय ध्यान से ऊर्ध्व सौमनस्य नहीं होता, किन्तु ५.५३ सो के अनुसार मद यातुक ह । ५ चितं मनो (ऽय) विज्ञानमेकार्यम्।-दोघ, १.२१, संयुत्त, २.९४ से तुलना कोजिये। चित्त, मनस् पर अत्यतालिनी १४० से तुलना कोजिये (क्योंकि उसका स्वभाव विचित्रित है)। --हृदय और मनस् एक हैं यह कुशल और अकुशल का संचय करता है, ऐसा अर्थ है (याया) [व्या० १४१.१५] -तिब्बती भाषान्तर : क्योंकि यह जानता है । अत्यसालिनी, २९३: आलम्बनं चिन्तेति इति चित्तम्। 'मन ज्ञाने' इत्यस्य औणादिकप्रत्ययः [च्या० १४१.१६] (धातुपाठ, ४, ६७)। 3 "चित्रं शुभाशुभातुभिरिति चितम् । व्याख्या में यह अधिक है : भावनातनिवेशयोगेन सौरान्तिकमतेन योगाचारमतेन वा। परमार्य का पाठ : चितं शुभाशुभैर्यातुभिस्तान् वा चिनोतीति चित्तम् !--इसी प्रकार तिब्बती अनुवाद है : "क्योंकि यह कुशल और अकुशल धातुओं से चित है।" [या० १४१.१८] ४ चित्तचेतसाः । साधयालम्बनाकाराः संप्रपत्ताश्च पंचवा ।। [या० १४१.२४] ५ साकारास्तस्यवालम्बनस्य प्रकारण (?) आकरणात् । व्या० १४१.२९]-विज्ञान नोलादि वस्तु को जानता है, वेदना सातादि मालम्बन वस्तु का अनुभव करतोह, संज्ञा उसके