पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१६१

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द्वितीय कोशस्थान : चित-विप्रयुक्त १४७ ३. मार्ग सत्य (६.२५ डी) की प्राप्ति अनासव ही होती है। [१८८] शैक्षधर्मो (६.४५ बी) की प्राप्ति शैक्षी है, अशैक्ष धर्मों की प्राप्ति अशैक्षी है। किन्तु त्रिधा न शैक्षाशैक्षाणामहेयानां द्विधा मता। अव्याकृताप्तिः सहजाऽभिज्ञानर्माणिकाद् ऋते ॥३८॥ ३८ ए. नशैक्षाशैक्ष धर्मों की प्राप्ति निविध है। २ यह नैवशैक्षनाक्ष [६.४५ बी] धर्म सात्रय और असंस्कृत धर्म है। इनकी यह संज्ञा इस लिये है क्योंकि यह शैक्ष और अशैक्ष धर्मो से भिन्न है। समासेन इन धर्मों की प्राप्ति त्रिविध है । विशेष व्यवस्थापित करना है : १. सास्रव धर्मों की प्राप्ति नैवशैक्षीनाशक्षी है; २. इसी प्रकार अनार्य से प्राप्त अप्रतिसंख्यातिरोध की प्राप्ति और प्रतिसंख्यानिरोध की प्राप्ति 3 ३. प्रतिसंख्यानिरोध की प्राप्ति शैक्षी है यदि निरोध शैक्षमार्ग से प्राप्त होता है ; अशैक्षी है यदि यह निरोध अशैक्षमार्ग से प्राप्त होता है। दर्शनहेय-भावनाहेब धर्मों की प्राप्ति का छेद यथाक्रम दर्शन और भावना से होता है। अतः प्रहाण की दृष्टि से यह इन धर्मों के जाति की है (२.१३)। अहेय धर्मों का प्राप्ति-भेद है। ३८ बी. अहेय धर्मों की प्राप्ति द्विविध है। यह धर्म अनास्लव धर्म (१.४०बी, २. १३ डी) हैं। [१८९] अप्रतिसंख्यानिरोध की प्राप्ति भावनाहेय है। इसी प्रकार अनार्य से प्राप्त प्रतिसंख्यानिरोध की प्राप्ति। (लौकिक) मार्ग से प्राप्त होता है, आरूप्यावचरी है यदि आरूप्यायचर (लौकिक) मार्ग से प्राप्त होता है । द्वितीय अवस्था में यह रूपावचरी और अनास्रव है यदि रूपावचर (लौकिक) मार्ग से निरोध प्राप्त होता है : यह आरूप्यावचरी और अनास्रव है यदि आरूप्यावचर मार्ग से प्राप्त होता है। यह अनास्लव है यदि (६.४६ में वर्णित नियम के अनुसार )अनास्त्रव मार्ग से निरोध प्राप्त होता है । १ बौद्ध धर्म शैक्ष के, उस आर्य के जो अर्हत् नहीं है, अनास्त्रव-धर्म है । अशैक्ष के धर्म अर्हत के अनासव-धर्म हैं। २ [विधान शैक्षाशक्षाणाम् 3 परमार्थः "इसी प्रकार अनार्य से प्राप्त अप्रतिसंख्यानिरोध और प्रतिसंख्यातिरोध को प्राप्ति ।" शुआन्-चाडा : ..अनार्य मार्ग से प्राप्त प्रतिसंस्थानिरोष की प्राप्ति ।" ४ [अहेयानां द्विधा मता 11 4