पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२०६

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१९२ अभिधर्मकोश .. .. ३. कारणहेतु का जो निर्देश हमने किया है वह सामान्य निर्देश है और उसमें प्रधान कारणहेतु तथा अप्रधान कारणहेतु दोनों संगृहीत हैं। प्रधान कारणहेतु जनक है : इस अर्थ में चक्षु और रूप चक्षुर्विज्ञान के कारणहेतु हैं यथा आहार शरीर का कारणहेतु है, वीजादि अंकुरादि [२४८] के कारणहेतु हैं। (२.५६ बी देखिये) । ४. आक्षेप-यदि सब धर्म अन्य धर्मों के कारणहेतु हैं क्योंकि वह उनमें विघ्न उपस्थित नहीं करते तो सब धर्मों का युगपत् उत्पाद क्यों नहीं होता?' प्राणातिपातकारक के समान सब सत्व प्राणातिपातभाक क्यों नहीं होते ? दोष व्यर्थ है। वास्तव में सब धर्म कारणहेतु कहलाते हैं क्योंकि वह विघ्नभाव से अवस्थित नहीं होते : यह नहीं है कि उन सब का कारकभाव है। ५. अन्य आचार्यों के अनुसार सब कारणहेतुओं का सब धमों के प्रति एक सामर्थ्य है। यथा निर्वाण और चक्षुर्विज्ञान : एक मनोविज्ञान, कुशल या अकुशल, उत्पन्न होता है। निर्वाण उसका आलम्बन है (२.६२ सी-डी)। पश्चात् इस मनोविज्ञान से एक चक्षुर्विज्ञान उत्पन्न होता है । अतः चक्षुर्विज्ञान के प्रति निर्वाण का परंपरया सामर्थ्य है। अनुत्पन्नधर्म, नारकसत्व आदि का भी ऐसा ही सामर्थ्य है। ५० सी-डी. सहभूहेतु वह धर्म हैं जो एक दूसरे के फल हैं अर्थात् भूत, चित्त और चित्तानु- वर्ती, लक्षण और लक्ष्य । १. जो धर्म परस्पर पुरुषकारफल (२.५८) हैं वह सहभूहेतु कहलाते हैं। [२४९] यथा महाभूत अन्योन्य के सहभूहेतु हैं । यथा चित्त और चित्तानुवर्ती (२.५१); यथा जाति आदि लक्षण (२.४५ बी) और वह धर्म जो उनका लक्ष्य है। अतः सब संस्कृत धर्म यथासंभव सहभूहेतु हैं। किन्तु उन धर्मो में यथायोग विशेष करना चाहिये जिनका अन्योन्यफलत्वेन संबन्ध है ।' २. पूर्व लक्षण सावशेष है । अतः कहते हैं कि एक धर्म अपने अनुलक्षणों (२.४५) का १ २ .. इस वचन के अनुसार :आहारसमुदयात् कायस्य समुदयः [व्या १९०. .२९]--संयुक्त,३. ६२ से तुलना कीजिये। सब कारण का कार्य होता है : कारणे सति कार्येण भवितव्यम् । व्या १९०.३२] कारिका ५०, ३.१०२ में इसका विचार-विमर्श है । । सहभूर्ये मियः फलाः । भूतवच्चित्तचित्तानुवतिलक्षणलक्ष्यनत् ॥ [व्या १९१.१३] 'यत्' प्रत्यय का अर्थ 'तद्यथा' है। यह नहीं कहते कि सब सहभूधर्म सहभूहेतु हैं [च्या १९१.१५] । यथा नीलादि भौतिक रूप महाभूतों का सहभू है किन्तु यह उनका सहभूहेतु नहीं है (पृ.० २५३ देखिये) । १.२४, २.२२, ६५ देखिये। सब संस्कृतधर्म और उसके लक्षण एक दूसरे के सहभूहेतु हैं। एक धर्म अन्य धर्म के लक्षणों फा सहभूहेतु नहीं है। ५