पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२११

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द्वितीय कोशस्थान : हेतु

१९७ सर्वास्तिवादिन् - यथा त्रिदण्ड का अन्योन्य बल से अबस्थान होता है उसी प्रकार सहभू चित्त-वैत्तादि का हेतुफलभाव सिद्ध होता है। [२५५] सौत्रान्तिक-इस अभिनव दृष्टांत की मीमांसा होनी चाहिये । प्रश्न है कि क्या विदण्ड का अवस्थान नहोलन्न त्रिदण्ड के बल से होता है नयवा क्या जिस प्रकार पूर्वसामग्री- वश उनका सहभाव होता है उसी प्रकार पश्चात् भी परस्पराश्रितों का उत्पाद होता है। पुनः अन्योन्य वल के अतिरिक्त अन्य किंचित् भी यहाँ होता है । सूत्रक, शंकुक, धारिका पृथिवी। किन्तु सर्वास्तिवादिन कहता है कि सहमू के सहभहेतु से अन्य हेतु भी होते हैं अर्थात् सभागहेतु, सर्वत्रगहेतु, विपाकहेतु जो सूत्रकादिस्थानीय हैं। अतः सहभूहेतु सिद्ध है। सभागहेतुः सदृशाः स्वनिकायभुवोऽग्रजाः । अन्योन्यं नवभूमिस्तु मार्गः समविशिष्टयोः ॥५२॥ ५२ ए. सदृश धर्म सभागहेतु हैं । सभाग तभाग के सभागहेतु हैं । १. पांच कुशल स्कन्ध ५ कुशल स्कन्द के सभागहेतु हैं। क्लिष्ट अर्थात् अकुशल और निवृताव्याकृत क्लिप्ट के सभागहेतु हैं । अव्याकृत अर्थात् अनिवृताव्याकृत अत्र्याकृत के सभाग- हेतु है। आचार्यों का इस अन्तिम हेतु पर सर्वदा ऐकमत्य नहीं है । कुछ के अनुसार जव्याकृतरूप ५ वव्याकृत स्कन्धों का सभागहेतु है किन्तु वेदनादि चार स्कन्ध रूप के सभागहेतु नहीं हैं। दूसरों के अनु पार चार स्कन्ध पाँच के सभागहेतु हैं किन्तु ल्प चार का सभागहेतु नहीं है। दूसरों के अनुसार रु चार का सभागहेतु नहीं है और अन्योन्यतः । एक निकायसभाग में कलल दस अवस्याओं का सभागहेतु है :५ गर्भावस्था है- कलल, [२५६] अर्बुद पेशिन्, धन, प्रशाखा; ५ जातावस्या है-- बाल, कुमार, युवा, मध्य, वृद्ध। द्वितीय गर्भावस्था (अर्बुद.... वाई) ९ बस्याओं का सभागहेतु है, एवमादि । प्रत्येक अवस्था का पूर्व क्षण उस अवस्था के अपर क्षणों का अभागहेतु है । (४.५३ से तुलना कीजिए। समानजातीय अन्य निकायसमाग में पूर्वजन्म को प्रत्येक अवस्था १० अवत्याओं का समागहेतु है। १ सभागहेतुः सदृशाः २.५९ देखिये। २ तमविशिष्टयोः, २.५२ औ इस नियन के अनुसार-बार बस्ती स्कन्द 'विशिष्ट हैं, रूप 'न्यून' है। [व्या १९८.२८]