पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२४०

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द्वितीय कोशस्थान : फल २२७ पाश्चात्य आचार्य (विभापा, १२१.६) कहते हैं कि पूर्वोक्त पाँच फलों से भिन्न चार फल हैं: १. प्रतिष्ठाफल : जलमण्डल वायुमण्डल (३.४५) का प्रतिष्ठाफल है और एवमादि यावत् भोपवि प्रभृति महापृथिवी का प्रतिष्ठाफल है । २. प्रयोगफल : अनुत्पादनानादि (४.५०) अशुभादि (६.११) का प्रयोगफल है । ३. सामग्रीफल : चक्षुर्विज्ञान चक्षु, रूप, आलोक और मनस्कार का सामनीफल है। ४. भावनाफल : निर्माणचित्त (७.४८) ध्यान का भावनाफल है । सर्वास्तिवादिन के अनुसार इन चार फलों में से प्रथम अधिपतिफल में अन्तर्भूत है, अन्य तीन पुरुपकारफल में अन्तर्भूत हैं। हमने हेतु और फल का व्याख्यान किया है । अव इसकी समीक्षा करनी है कि विविव धर्मों का उत्पाद कितने हेतुओं से होता है । इस दृष्टि से धर्मों की चार राशियाँ हैं : १. क्लिष्टवर्म अर्थात् क्लेश, तत्संप्रयुक्त और [२९८] तत्समुत्थ धर्म (४.८); २. विपाकज या विपाक हेतु से (२.५४ सी) संजातवमं; ३. प्रथम अनानव धर्म अर्थात् दुःखे धर्मज्ञानक्षान्ति (१.३८ वी, ६.२७) और तत्सहभूधर्म; ४. शेषव अर्थात् विपाकवयं अव्याकृत धर्म और प्रथम अनास्त्रव क्षण को वर्जित कर कुशलधर्म। क्लिण्टा विपाकजाः शेषाः प्रयमार्या ययाक्रमम् । विपाकं सर्वगं हित्वा ती सभागं च शेषजाः ॥६०॥ चित्तवेत्तास्तथाऽन्येऽपि संप्रयुक्तकवर्जिताः। चत्वारः प्रत्यया उक्ता हेत्वाख्यः पञ्च हेतवः ॥६१॥ ६०-६१ वी. (१) क्लिप्ट, (२) विपाकज, (३) शेप, (४) प्रथमार्य चित्त- चैत्त यथाक्रम (१) विपाकहेतु को, (२) सर्वत्रगहेतु को, (३) इन दो हेतुओं को, (४) इन दो हेतुओं तथा सभागहेतु को वर्जित कर शेप हेतुओं से उत्पन्न होते हैं । चित्त-चैत्त से अन्य धर्मों के लिये संप्रयुक्तकहेतु को भी वर्जित करना चाहिये ।। (१) क्लिष्ट चित्त-चैत्त विपाकहेतु को वर्जित कर शेष पाँच हेतुओं से संजात होते हैं; (२) विपाकज चित्त-चैत्त सर्वत्रगहेतु को वर्जित कर शेष पांच हेतुओं से उत्पन्न होते हैं; (३) इन दो प्रकारों से और चतुर्थ प्रकार से अन्य चित्त-चैत विपाकहेतु और सर्वत्रगहेतु को वजित कर शेष चारं हेतुओं से उत्पन्न होते हैं; (४) प्रथम अनास्रव चित्त-चैत पूर्वोक्त दो हेतु और सभाग- हेतु को वर्जित कर शेष तीन हेतुओं से उत्पन्न होते हैं। १ क्लिष्टा विषाकजाः शेवाः प्रयमार्या यथाक्रनम् । विपाकं सर्वगं हित्वा ती सभागं च शेषजाः ॥ चित्तवेत्तास् [तथान्ये च संप्रयुक्तकजिताः] । अभिधर्महृदय, २.१२-१५ से तुलना कीजिये।