पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२४१

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२२८ अभिधर्म कोश चित्त-चत्तं से अन्य धर्म अर्थात् रूपीधर्म और चित्त-विप्रयुक्त-संस्कार (२.३५) जिस राशि के अन्तर्भूत होते हैं उस राशि के हेतुओं से एक संप्रयुक्तकहेतु को वर्जित कर उत्पन्न होते हैं : क्लिष्ट और विपाकज, चार हेतु; शेष, तीनं हेतु; प्रथमानास्रव (अनास्रवसंवर, ४.१३), दो हेतु । कोई ऐसा धर्म नहीं है जो एक हेतु से संभूत है : कारणहेतु और सहभूहेतु का अवश्य अविनाभाव है। [२९९] हम हेतुओं का व्याख्यान कर चुके हैं। प्रत्यय कितने हैं ? ६१ सी. प्रत्यय चार कहे जाते हैं। यह कहाँ कहा है ? इस सूत्र में : "चार प्रत्ययता है अर्थात् हेतु-प्रत्ययता, समनत्तर-प्रत्ययता, आलम्बन-प्रत्ययता, अधिपति-प्रत्ययता" । [३००] 'प्रत्ययता' का अर्थ 'प्रत्ययजाति' है।' १ चत्वारः प्रत्यया उक्ताः। विभाषा, १६, ८: “यह सत्य है कि यह ६ हेतु सूत्र में उक्त नहीं हैं। सूत्र में केवल इतना उक है कि चार प्रत्ययता हैं।" जापानी संपादक महायान से वचन उद्धृत करते हैं : नैञ्जियो १४१ (अनु-धर्मगुप्त) घनव्यूह नैञ्जियो, १४० (अनु० शुआन-चार), मध्यमक (मध्यमकवृत्ति, पृ० ७६ देखिय] हेतु और प्रत्यय के परस्पर के संबन्ध में विभाषा के प्रथम आचार्य कहते हैं कि (१) हेतुप्रत्यय में कारणहेतु को वजित कर ५ हेतु संगृहीत हैं, (२) कारणहेतु में अन्य तीन प्रत्यय संगृहीत हैं। विभाषा के द्वितीय आचार्य कहते हैं कि (१) हेतुप्रत्यय में ५ हेतु संग्रहीत हैं, (२) कारण- हेतु केवल अधिपतिप्रत्यय है : इस सिद्धांत को वसुबन्धु स्वीकार करते हैं। महायान के आचार्यों के लिये सभागहेतु हेतुप्रत्यय और अधिपतिप्रत्यय दोनों हैं, अन्य ५ हेतु अधिपति- प्रत्यय है। भकरण, ३० ए १७, में चार प्रत्यय परिगणित हैं। विज्ञानकाय, १६ ए ७, विज्ञानतः इनका निर्देश करता है : "चक्षुर्विज्ञान का हेतु-प्रत्यय क्या है ? सह और संप्रयुक्त धर्म । - उसका समनन्तर-प्रत्यय क्या है ? चित्त और चैत्त जिनके यह सम और अनन्तर है, उत्पन्न और उत्प- धमान चक्षुर्विज्ञान । उसका आलम्बन-प्रत्यय क्या है ? रूप-उसका अधिपत्ति-प्रत्यय पंया है ? स्व को वजित फार सर्व धर्म चक्षुविज्ञान किसका हेतु-प्रत्यय है ? सहभू और संप्रयुक्त धर्मों का--किसका यह सननन्तर-प्रत्यय है ? उत्पन्न या उत्पधमान, इस विज्ञान के सम और अनन्तर, चित्त-चत्तों का ।-किसका यह मालम्बन-प्रत्यय है ? चित्त-वैत का जो उसको आलम्बनल्य में ग्रहण करते हैं।-किसका यह अधिपति-प्रत्यय है ? स्थ को वजित कर सर्व धर्मों का।" अभिधर्महृदय, २.१६ में चार प्रत्ययों का वही लक्षण दिया है जो हमारे ग्रन्थ में है : हेतु. प्रत्यय में ५ हेतु संगृहीत है : अधिपति-प्रत्यय कारणहेतु है। अभिधम्म के 'पञ्चयों के लिये दुकपट्ठान प्रधान प्रमाण प्रतीत होता है। अभिधर्म से अनेक सादृश्य है। माल्या भिन्न हैं, यथा 'सहजाताधिपतिपच्चय हमारा सहभूहेतु' है। कथा- वत्यु, १५.१--२ भी देखिये । १ अर्थात् प्रत्ययप्रकार, यथा गो जाति के लिये 'गोता' कहते हैं।