पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२४३

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अभिधर्मकोश नन्तर-प्रत्यय नहीं है । कदाचित् बहुतर से अल्पतर की उत्पत्ति होती है, यथा तुष का वहु समुदाय प्रदीप्त होने पर भस्म होता है । कदाचित् अल्पतर से बहुतर की उत्पत्ति होती है। क्योंकि एक क्षुद्र बोज न्यग्रोध के मूल, स्कन्ध, शाखा और पत्र का उत्पाद करता है । २. आक्षेप-~-जव चित्तों की अनन्तर उत्पत्ति होती है तो क्या इनमें सदा समानसंख्यक जाति के संप्रयुक्त चत्त होते हैं ? नहीं । कदाचित् पूर्व चित्त के बहुतर चैत्त होते हैं; कदाचित् अपर चित्त के अल्पतर चत्त होते हैं; कदाचित् इनका विपर्यय होता है। कुशल, अकुशल, अव्या- कृत चित्त की उत्पत्ति एक दूसरे के उत्तर होती है और इनके संप्रयुक्त चैत्तों की संख्या (२.२८.- ३०) एक नहीं होती ! समाधि जिनकी उत्तर उत्पत्ति होती है सवितर्क-सविचार, अवितर्क- विचारमात्र या अवितर्क अविचार होते हैं (८.७) । अतः रूपी धर्मों के तुल्य चैत्तों में समता नहीं होती (विभाषा, ११.५) । [३०२] यह सत्य है । कदाचित् अल्प से बहु उत्पन्न होते हैं; कदाचित् इसका विपर्यय होता है (विभाषा का द्वितीय मत) किन्तु केवल चैत्त-जाति (विभापा, ११, १७) की संख्या की वृद्धि या हास से अल्प-बहुतरोत्पत्ति होती हैं। यह जात्यन्तर के प्रति है । स्वजाति के प्रति असमता कभी नहीं होती : अल्पतर वेदना के उतर बहुतर वेदना कभी नहीं होती और न इसका विपर्यय होता है अर्थात् एक वेदनासहगत चित्त के उत्तर दो या तीन वेदनाओं से संप्रयुक्त अपरचित्त कभी नहीं होता। संज्ञात या अन्य चत्तों को भी इसी प्रकार योजना करनी चाहिये। इसलिये क्या स्वजाति के प्रति ही पूर्व-अपर का समनन्तर-प्रत्यय होता है ? क्या इसलिये वेदना केवल वेदना का समनन्तर-प्रत्यय है ? नहीं। सामान्यतः पूर्व चैत्त केवल स्वजाति के चैत्तों के नहीं किन्तु अपर चैत्तों के भी समन- न्तर-प्रत्यय हैं। किन्तु स्वजाति में अल्प से बहुतर की और विपर्यय से बहुतर से अल्प की उत्पत्ति नहीं होती : यह समनन्तर, 'सम और अनन्तर' इस शब्द को युक्त सिद्ध करता है। ३. एक आभिधार्मिक जो सान्तानसभागिक (विभापा, १०, १७) कहलाते हैं इसके विरुद्ध यह मानते हैं कि एक जाति का धर्म स्वजाति के धर्म का ही समनन्तर-प्रत्यय होता है : चित्त चित्तान्तर का समनन्तर-प्रत्यय है, वेदना वेदान्तर का, इत्यादि । आक्षेप--जव अक्लिष्ट धर्म के अनन्तर क्लिष्ट धर्म (= अकुशल या निवृताव्याकृत) उत्पन्न होता है तो इस विकल्प में यह क्लिष्ट धर्म समनन्तर-प्रत्यय से प्रवृत्त नहीं होगा। यह पूर्वनिरुद्ध क्लेश है जो उस क्लेश का सगनन्तर-प्रत्यय है जो इस द्वितीय धर्म को क्लिष्ट करता है। पूर्व क्लेश पश्चादुत्पन्न क्लेश का समनन्तर अवधारित होता है यद्यपि यह अक्लिष्ट धर्म से व्यवहित है क्योंकि अतुल्यजातीय धर्म से व्यवधान अव्यवधान के समान है । यथा पूर्वनिरुद्ध समापत्ति-चित्त निरोवसमापत्ति (२.४३ ,ए) के व्युत्थान-चित्त का समनन्तर- प्रत्यय है : समापत्ति द्रव्य से व्यवधान नहीं होता।