पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२४६

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द्वितीय कोशस्थान : प्रत्यय २३३. ऐसा नहीं है । मनस् कारित्रप्रभावित नहीं है । मनस् होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि यह अपरचित्त को आश्रय प्रदान ही करे। मनस् आश्रयभाव-प्रभावित है । इस अपरचित्त के लिये इसका आश्रयभाव है। वह उत्पन्न होता है या नहीं इससे कोई प्रयोजन नहीं । अर्हत् का चरमचित्त आश्रयभाव से अवस्थित है : यदि इस आश्रय से आश्रित विज्ञानान्तर नहीं उत्पन्न होता तो ऐसा कारणान्तर-वैकल्य से होता है। इसके प्रतिकूल समनन्तरप्रत्यय कारित्र-प्रभावित है। इस प्रत्यय से जो धर्म फल को प्रतिगृहीत, आक्षिप्त, करता है उसे सर्व धर्म या सव प्राणी इस प्रकार प्रतिबद्ध नहीं कर सकते कि उसके फल का उत्पाद न हो। अतः अर्हत् के चरमचित्त को मनस् कहना युक्त है। यह समनन्तरप्रत्यय नहीं है । (४) जो धर्म चित्तसमनन्तर हैं अर्थात् जो समनन्तरप्रत्यय चित्तजनित हैं क्या वह चित- [३०६] निरन्तर हैं अर्थात् क्या वह इस चित्त के अनन्तर उत्पन्न होते हैं.?' चार कोटि हैं। १. समापत्ति-प्रवेश-चित्त दो अचित्तक समापत्तियों के (२.४१) व्युत्थानचित्त और चैत का और द्वितीयादि समापत्ति-क्षणों का समनन्तरप्रत्यय है। यह चित्त निरन्तर नहीं है (२.६४ वी) । २. (१) प्रथम समापत्ति-क्षण के जात्यादि लक्षण (२.४५ सी), (२) सचित्तकावस्था के सर्व चित्त-चत्त के जात्यादि लक्षण चित्तनिरन्तर हैं किन्तु इनका कोई समनन्तरप्रत्यय नहीं है। ३. प्रथम समापत्ति-क्षण और सचित्तकावस्था के सर्व चित्त-चैत्त का समनन्तरप्रत्यय वह चित्त है जिनके वह निरन्तर हैं। ४. (१) द्वितीयादि समापत्ति-क्षण और (२) व्युत्थान चित्त-चैत्त के जात्यादि लक्षणों का समनन्तरप्रत्यय नहीं होता क्योंकि यह चित्त-विप्रयुक्त (२.३५) धर्म हैं। यह चित्तनिरन्तर नहीं हैं। वालम्बन प्रत्यय क्या है ? ६२ सी. सद धर्म आलम्बन हैं । सव धर्म, संस्कृत और असंस्कृत, चित्त, चैत्त के आलम्बन प्रत्यय हैं किन्तु अनियत रूप से नहीं। यथा सव रूप चक्षुर्विज्ञान और तत्संप्रयुक्त वेदनादि चैत्त के मालम्बन हैं। श्रोत्रविज्ञान का [३०७] शब्द आलम्बन है। घाणविज्ञान का गन्ध, कायविज्ञान का स्पष्टव्य आलम्बन है। मनोविज्ञान और तत्संप्रयुक्त चैत्त का आलम्बन सव धर्म हैं। [अतः मनन् के लिये कारिका ६२ सी को अक्षरशः लेना चाहिये। जब एक धर्म एक चित्त का माल म्बन होता है तो ऐसा नहीं होता कि यह धर्म विभाषा, ११, ७ के अनुसार; प्रकरण, ७४ बी १६ से तुलना कीजिये। [धर्मा आलम्बनं सर्वे] २