पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२४७

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अभिथर्मकोश किसी क्षण में इस चित्त का आलम्बन न हो । अर्थात् यद्यपि चक्षुर्विज्ञान रूप को आलम्बनरूप में ग्रहण नहीं करता (आलम्ब्यते) तथापि यह आलम्बन है क्योंकि चाहे इसका ग्रहण आलम्बनरूप में हो या न हो इसका स्वभाव वही रहता है। यथा इन्धन इन्धन है यद्यपि वह प्रदीप्त न हो। चित्त के आलम्ब्यलक्षणत्व की दृष्टि से यदि हम प्रश्न का विचार करें तो विविध नियम व्यवस्थापित होता है। चित्त-चैत्त आयतन, द्रव्य और क्षण के नियम से अपने अपने आलम्बन में नियत हैं। (१) आयतन-नियम से : यथा चक्षुर्विज्ञान रूपायतन आलम्बन में नियत है; (२) द्रव्य-नियम से : नीललोहितादिरूपग्राहक चक्षुर्विज्ञान नीललोहितादि रूप में (१.१० देखिये) नियत है; (३) क्षणनियम से : एक चक्षुर्विज्ञान एक नोलरूपक्षण में नियत है, अन्य क्षण में नहीं। क्या चित्त चक्षुरादि आश्रय नियम से भी नियत है ? --हाँ । वर्तमान चित्त सदा स्वाश्रय- प्रतिबद्ध है; अतीत और अनागत अप्रतिवद्ध हैं। दूसरों के अनुसार अतीत और अनागत स्वाश्रय प्रतिबद्ध है। अधिपतिप्रत्यय क्या है ? ६२ डी. कारणहेतु अधिपति कहलाता है।' अधिपतिप्रत्ययता कारणहेतु (२.५० ए) है क्योंकि कारणहेतु अधिपतिप्रत्यय है । [३०८] दो दृष्टियों से यह संज्ञा युक्त है ।-~अधिपतिप्रत्यय वह प्रत्यय है जो बहुधर्मों का है और जो बहुधर्मो का पति है (अधिकोऽयं प्रत्ययः, अधिकस्य वा प्रत्ययः) । १. सब धर्म मनोविज्ञान के आलम्बनप्रत्यय हैं। किसी चित्त के सहभूधर्म उस चित्त के सदा आलम्बन नहीं होते किन्तु वह उसके कारणहेतु हैं। अतः कारणहेतु होने से सब धर्म अधि- पतिप्रत्यय हैं, न कि आलम्बनप्रत्यय होने से । २. स्वभाव को वर्जित कर सब धर्म सब धर्म के कारणहेतु हैं । कोई धर्म किसी भी नाम से स्वभाव का प्रत्यय नहीं होता। संस्कृत धर्म असंस्कृत धर्म का प्रत्यय नहीं है और विपर्यय भी नहीं होता। प्रत्युत्पन्न, अतीत, अनागत इनमें से किस अवस्था में वह धर्म अवस्थान करते हैं जिनके प्रति विविध प्रत्यय अपना कारिज करते हैं ? हम पहले हेतु-प्रत्यय अर्थात् कारणहेतु को वजित कर पाँच हेतुओं की समीक्षा करते हैं। निरुध्यमाने कारिनं द्वौ हेतू कुरुतस्त्रयः । जायमाने ततोऽन्यौ तु प्रत्ययौ सद्विपर्ययात् ॥६३॥ २ ' ओमित्याह । -विभाषा, १९७, २ विभाषा, १२, ५ के प्रथम दो मत--तृतीय मत : प्रत्युत्पन्न, अतीत, अनागत चित्त स्वाश्रय- प्रतिबद्ध है। इस पाद का उद्धरण कठिन है : फारणास्थोऽधिपः स्मृतः । ३