पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२५४

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द्वितीय कोशस्थान : प्रत्यय २४१ सन्यिकाल में रूपाक्चर अन्तराभव में (३.३८); (७) आरूप्यवातुं का निवृताव्या- कृत चित्त, जब कामधातु में मृत पुद्गल आरूप्यवातु में पुनरुपपन्न होता है; कुशल नहीं, क्योंकि चार दूरताओं से कामधातु से आरूप्य के दूर होने के कारण पुद्गल कामवातु से आरूप्य- समापत्ति में प्रत्यक्ष नहीं जा सकता; (८-९) सत्याभिसमय-1(६.२७) काल में शक्ष-अशैक्ष, २ अनास्रव चित्त । [३१७] २. कुशल-कुशलचित्त-~-इन ८ चित्तों के अनन्तर उत्पन्न हो सकता है : (१-४) कामावचर चार चित्त (५-६), व्युत्थानकाल में रूपावचर दो चित्त--कुशल और निवृता- व्याकृत । वास्तव में ऐसा होता है कि क्लिष्टसमापत्ति से उत्पीड़ित हो योगी समाधि से व्युत्थान करता है : क्लिष्ट (= निवृत) समापत्ति-चित्त के अनन्तर वह अवरभूमिक कुशल- चित्तका उत्पाद करता है और इस प्रकार अधरकुशल (८.१४) के संश्रयण से वह परिहाणि को बचाता है; (७-८) सत्यभिसमय-व्युत्थानकाल में शैक्ष-अशैक्ष के दो अनास्लव चित। ३. दो अनाव चित्तों को वर्जित कर १० चित्तों के अनन्तर क्लिष्ट अर्थात् अकुशल और निवृतान्याकृत की उत्पत्ति हो सकती है क्योंकि कामावर प्रतिसन्धि-चित्त क्लिष्ट होता है (२.१४, ३.३८) और धातुक किसी चित्त के भी अनन्तर हो सकता है । ४. क्लिष्ट के अनन्तर कामवातु के चार चित्त उत्पन्न हो सकते हैं। ५. पांच चित्तों के अनन्तर अर्थात् कामधातु के चार चित्त और रूपधातु के कुशल के अनन्तर अनिवृताव्याकृत उत्पन्न हो सकता है क्योंकि रूपावचर कुशल-चित्त के अनन्तर कामावचर निर्माण- चित्त अर्थात् वह चित्त जिसका आलम्बन कामाप्त अर्थ का निर्माण है उत्पन्न होता है । ६. अनिवृताव्याकृत के अनन्तर यह सात चित्त उत्पन्न हो सकते हैं: (१-४) कामधातु के चार चित्त; (५-६) रूपधातु के दो चित्त-कुशल, क्योंकि पूर्वोक्त निर्माण-वित्त के अन- न्तर रूपावचर कुशल-चित्त की पुनः उत्पत्ति होती है, और निवृताव्याकृत, जब एक पुद्गल, निवृ- ताव्याकृत मरण-चित्त के अनन्तर रूपधातु में पुनः उत्पन्न होता है जहाँ प्रथम चित्त अवश्य निवृ. ताव्याकृत (३.३८) होता है; (७) मारूप्यधातु का एक निवृताव्याकृत-चित्त, जब एक पुद्- गल निवृताव्याकृत मरण-चित्त के अनन्तर आल्प्यवातु में पुन: उत्पन्न होता है । [३१८] ६८ सी-६९ वी. रूपधातु में कुशल के अनन्तर ११, ९ के बनन्तर कुशल; २ चार दूरता यह है : आश्रय, आकार, आलम्बन, प्रतिपक्षदरता: ए. आरूप्यावर आश्रय से किसी कामावचर धर्म का सम्मुखीकरण नहीं होता यया पावचर आश्रय से कामावचर निर्माणचित्त (२.५३ वी) का सम्मुखीकरण होता है। बी. मारूप्यावर चित्त बौदारिक इत्यादि आकारों से (६.४९) कामधातु का आकरण नहीं फरता यया रूपाववर चित्त करता है। सो. आल्प्यापचर चित्त कामयातु को आलम्बन नहीं बनाता यया रूपावर चित्त बनाता है। डी. आरूप्यावर चित्त कानधातु के क्लेशों का प्रतिपक्ष नहीं है यया ध्यान प्रतिपक्ष है। चार अन्य दरताओं पर ५.६२ देखिये । ४.३१,५.१०६ देखिये .