पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२५६

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द्वितीय कोशस्थान : प्रत्यय २४३ ७० सी-७१ ए. चार के अनन्तर शैक्ष; शैक्ष के अनन्तर ५; पाँच के अनन्तर अशैक्ष, अशैक्ष के अनन्तर चार ।' शैक्ष की-उस आर्य के चित्त की जो अर्हत् नहीं है-उत्पत्ति शैक्ष और त्रैधातुक कुशल इन चार चित्तों के अनन्तर हो सकती है । शैक्ष के अनन्तर ५ चित्त अर्थात् उक्त चार चित्त और अशैक्ष उत्पन्न हो सकते हैं । ५ चित्तों के अनन्तर अर्थात् शैक्ष, अशैक्ष और धातुक कुशल के अनन्तर अशैक्ष की उत्पत्ति हो सकती है । अशैक्ष के अनन्तर चार चित्त, अशैक्ष और त्रैधातुक कुशल, उत्पन्न हो सकते हैं। इन नियमों के अनुसार १२ प्रकार के चित्त एक दूसरे के अनन्तर उत्पन्न हो सकते हैं। ७१वी-७२. धातुक कुशलकोप्रायोगिक और उपपत्तिलाभिक इन दो भागों में, कामावचर अनिवृताव्याकृत को विपाकग, ऐर्यापथिक, शैल्पस्थानिक और नैर्मित इन चार भागों में, रूपा- [३२०] वचर अनिवृताव्याकृत चित्त को शैल्पिक को वर्जित कर तीन भागों में विभक्त करने से १२ प्रकार के चित्त २० होते हैं।' १. प्रत्येक धातु के कुशल को दो प्रकार में विभक्त करते हैं : १. यानिक, प्रायोगिक, २. उपपत्तिलाभिक, उपपत्तिप्रातिलम्भिक ।--अतः कुशल के ६ भेद होते है जो प्रथम सूची के तीन भेदों के अनुरूप हैं। कामावचर अनिवृत्ताव्याकृत के चार प्रकार है : १. विपाकज (२.५७); २. ऐया. पथिक-चंक्रमण, स्थान, आसन, शयन'; ३. शैल्पस्थानिक'; ४. नैमित, नैर्माणिक: निर्माण वह चित्त है जिस से ऋद्धिसमन्वागन पुद्गल रूपादि का निर्माण करता है और जिसे अभिनाफल (७.४९) (ऊपर पृ० २६५) कहते हैं । ३ शकं चतुर्य एतस्मात् पञ्चाशदं तु] पञ्चकात् ॥ तस्माच्चत्वारि चित्तानि द्वादश तानि विशतिः । विधा भिन्दा प्रायोगिकोपपत्तिला शुभम् ॥] विपाकर्यापविकल्पस्यानिकनर्मितम् । चतुर्षा व्याकृतं कामे [रूपे शैल्पिकजितम् ॥] अर्थात् १. श्रुतमय, २. चिन्तामय, ३. भावनामय -कामवातु में १ और २, रूपधातु में १ और ३; आरूप्यधातु में ३, जैसा हम अपर पृ० २६५ में देख चुके हैं। पृ.३२८ से तुलना कोजिये। । यह वह कुशल है जिसको प्राप्ति काम और रूपधातुओं के अन्तराभव-प्रतिसन्धिक्षण में प्रथ- मतः उत्पन्न होती है। आरूप्पधातु में उपपत्तिभव में इसकी प्राप्ति उत्पन्न होती है । या २४२.२३] दिव्यावदान, पृ.५८.१०० में शिल्पस्यानकर्मस्थान (महाव्युत्पत्ति ७६, ५) की एक सूची दी है। हायो के सिर पर, घोड़े की पीठ पर सवार होने का शिल्प, धनुष आदि के चढ़ाने का शिल्प।