पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२६०

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द्वितीय कोशस्थान :प्रत्यय २४७ के अनन्तर ६ : (१-३) प्रायोगिक को वर्जित कर स्वधातु के तीन; (४) रूपावर निवृताव्याकृत; (५-६) कामाक्चर अकुशल और निवृत्ताव्याकृत । स्वधातु के चार के अनन्तर । (४) दो अनास्लव-चित्त : १. शैक्ष के अनन्तर ६ : (१-३) तीन धातुओं के प्रायोगिक; (४) कामावचर उपपत्तिलाभिक; (५-६) शैक्ष और अशैक्ष । इन ४ के अनन्तर : (१-३) तीन धातुओं के प्रायोगिक ; (४) शैक्ष । २. अशैक्ष । के अनन्तर पाँच : एक शैक्ष का परित्याग कर अशैक्षानन्तर ५ । पाँच के अनन्तर : (१-३) तीन धातुओं के प्रायोगिक, (४-५) शैक्ष और अशैक्ष। ३. सूचना । ए. विपाकज, ऐयपिथिक और शैल्पस्थानिक कामावचर प्रायोगिक के अनन्तर उत्पन्न होते हैं। किस कारण से इसका विपर्यय सत्य नहीं है ? विपाकज प्रायोगिक के अनुकूल नहीं है क्योंकि यह दुर्वल है, क्योंकि इसकी प्रवृत्ति विना यत्न के होती है (अनभिसंस्कारवाहित्वात् = अयलेन प्रवृत्तेः) व्या २४६.४] ऐयोपथिक और शैल्पस्थानिक प्रायोगिक के अनुकूल नहीं है क्योंकि उनकी प्रवृत्ति ईर्यापथ और शिल्प के अभिसंस्करण में है। (इपिथशिल्पाभिसंस्करणप्रवृत्तत्वात्) व्या २४५. ३३] इसके विपरीत निष्क्रमण-चित्त अनभिसंस्कारवाही (अनाभोगवाही [व्या २४६ . १६]) है । यह चित्त विपाकज आदि किसी स्वभाव का हो सकता है । इस चित्त से योगी [३२५] आदि प्रायोगिका चित्त-प्रवाह से निष्क्रमण करता है । अतः निष्क्रमण-चित्त का प्रायोगिकचित्त के अनन्तर उत्पाद हो सकता है । वी. आक्षेप-यदि प्रायोगिक इसलिये विपाकज आदि के अनन्तर नहीं उत्पन्न होता क्योंकि यह उसके अनुकूल नहीं हैं तो क्लिष्ट के अनन्तर भी वह उत्पन्न नहीं होता क्योंकि क्लिष्ट विगुण धर्म है । क्लिष्ट प्रायोगिक का विगुण है । तथापि जव योगी क्लेश-समुदाचार के परिज्ञान से क्लेश- सदाचार से परिखिन्न होता है तब प्रायोगिक का उत्पाद होता है । सी. कामावचर उपपत्तिप्रतिलम्भिक कुशल पटु है। अतः यह दो अनात्रव और रूपावचर प्रायोगिक के भी अनन्तर उत्पन्न हो सकता है। किन्तु क्योंकि यह अनभिसंस्कारवाही है इसलिये इसके अनन्तर यह चित्त नहीं 'उत्पन्न होते । कामावचर उपपत्तिप्रतिलम्भिक कुशल पटु है । इसलिये यह रूपावचर क्लिष्ट के अनन्तर श्रुत, चिन्ता