पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२६३

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२५० अभिधर्मकोश धातु का एक, इन पाँच मनस्कारों के अनन्तर आर्यमार्ग का उत्पादन होता है। किन्तु आर्य- मार्ग के अनन्तर कामावचर उपपत्तिप्रातिप्तलम्भिक-मनस्कार उत्पन्न हो सकता है क्योंकि यह क्लिपटे धातुके लाभः षण्णां षण्णां द्वयोः शुभे । त्रयाणां रूपजे शैक्षे चतुर्णा तस्य शेषिते ॥७३॥ जव १२ प्रकार के चित्तों में से (२.६७) किसी एक का संमुखीभाव होता है तो कितने चित्तों का लाभ (प्रतिलम्भ) होता है ? ७३ ए-बी. धातुक क्लिष्ट के साथ यथाक्रम ६, ६, २ चित्त का लाभ होता है । 'लाभ' से अभिप्राय उसके समन्वागम के लाभ का है जो पूर्व असमन्वागत था। (१) कामावचर क्लिष्ट-चित्त के साथ ६ चित्तों का लाभ । ए. कामावचर कुशल-चित्त का लाभ (१) जव विचिकित्सा संप्रयुक्तक्लिष्ट (४.८० सी) चित्त से कुशलमूल का प्रतिसंधान होता है; (२). जब परिहाणितः ऊर्ध्व धातु से कामधातु में प्रत्यागमन होता है (धातुप्रत्यागमन) । प्रतिसन्धि-चित्त अवश्य क्लिष्ट (३. ३८) होता है; [३२९] वह इस चित्त के साथ कामावचर कुशल-चित्त का लाभ करता है क्योंकि वह पूर्व उससे असमन्वागत था। वी-सी. कामावचर अकुशल और निवृताव्याकृत चित्त का लाभ (१) जव ऊर्ध्व धातु से परिहीण हो कामधातु में प्रत्यागमन होता है। क्योंकि तब इन दो चित्तों में से उसका लाभ होता है जिसका संमुखीभाव होता है; (२) जब कामवैराग्य से परिहाणि होती है । डी. रूपावचर निवृताव्याकृत चित्त का लाभ, जब वह आरूप्यधातु से कामधातु में परिहीण होता है। कामावचर क्लिष्ट प्रतिसन्धि-चित्त के साथ वह रूपावचर निवृताव्याकृत चित्तका लाम करता है ई-एफ. आरूप्यावचर निवृताव्याकृत चित्त और शैक्षचित्त का लाभ , जव वह कामावचर चित्त से अर्हत्व से परिहीण होता है । (२) रूपायचर क्लिष्ट चित्त के साथ ६ चित्तों का लाभ । कामावचर अनिवृताव्याकृत चित्त (निर्माणचित्त) और रूपावचर तीन चित्त का लाभ, जब आरूप्यधातु से रूपधातु में परिहाणि होती है । • आरूप्यावचर निवृताव्याकृत चित्त और शैक्षचित्त का लाभ, जब रूपावचर चित्त से अर्हत्व से परिहाणि होती है । । क्लिष्टे चैधातुके लाभः घण्णां पषणां न्योः [व्या २४८.१२] । विभाषा में इसका विचार किया गया है कि क्या कुशल-चित्त जिसका लाभ इस प्रकार होता है केवल उपपत्तिप्रातिलम्भिक है या प्रायोगिक भी है।