पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२६४

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द्वितीय कोशस्थान :प्रत्यय २५१ (३) आरूप्यावचर क्लिष्ट चित्त के साथ आरूप्यावचर निवृताव्याकृत चित्त और शैक्षचित्त का लाभ : जब आरूप्यावचर चित्त से अर्हत्व से परिहाणि होती है। ७३ बी-सी. रूपावचर कुशलचित्त के साथ तीन का लाभ ।' रूपावचर कुशलचित्त के संमुखीभूत होने पर तीन चित्तों का लाभ : उसी रूपावचर कुशल का लाभ, कामावचर और रूपावचर अनिवृताव्याकृत चित्त का लाभ -अर्थात् दो धातुओं के निर्माणचित्त का लाभ । [३३०] ७३ सी-डी. शैल चित्त के साथ चार का लाभ ।' जब प्रथम शैक्षचित्त का अर्थात् दुःखे धर्मज्ञानक्षान्ति का (६ .२५ डी) संमुखीभाव होता है तब चार चित्तों का लाभ होता है : (१) वही शैक्षचित्त, (२-३) कामावचर और रूपावचर (निर्माणचित्त) अनिवृताव्याकृत दो चित्त, (४) आरूप्यावचर कुशलचित्त : आर्य- मार्ग के योग से वह मार्ग में (नियामावक्रान्ति ६.२६ ए) प्रविष्ट है और काम-रूप- धातु से विरक्त है। ७३ डी. शेप चित्तों के साथ उन्हीं चित्तों का लाभ ।' जिस चित्त का लाभ व्याख्यात नहीं है उसके संमुख होनेपर केवल उसी चित्त का लाभ होता 1 एक दूसरे मत के अनुसार धातुओं का भेद किये बिना हम यह कह सकते हैं कि : “यह स्मृत है कि क्लिष्ट-चित्त के साथ ९ चित्तों का लाभ, कुशल-चित्त के साथ ६ का लाभ, अव्याकृत-चित्त के साथ अव्याकृत-चित्त का लाभ होता है ।" कुशल-चित्त के साथ सात का लाभ होता है, ६ का नहीं, ऐसा कहना चाहिये । जब पुद्गल सम्यग्दृष्टि (४.८०) से कुशल-मूल का प्रतिसन्धान करता है तब वह कामावबर कुशल-चित्त का लाभ करता है। जब वह कामधातु से विरक्त होता है तब वह दो अनिवृताव्याकृत, कामावचर और रूपावचर निर्माणचित्त का लाभ करता है । जव वह रूपावचर और आरूप्यावधर समाधि व २ [शुभे । त्रयाणां रूपजे] । । शिक्षे चतुर्णाम्] [व्या २४९.२४] तस्य बाधिक ॥] यह धर्मत्रात के अन्य की एक कारिका है, नैञ्जियो १२८७, फ़ोलियो ८६ ए १७: "यदि कोई ९ प्रकार के धर्मों का लाभ करता है तो जानना चाहिये कि यह क्लिपट-चित के साथ है। कुशलचित्त ६ प्रकार के चित्त का लाभ करता है। अव्याकृत-चित्त अव्याकृत का।" (संघवर्मन् का अनुवाद)। परमार्य “जब क्लिष्ट-चित्त का उत्पाद होता है तो कहा जाता है कि ९ प्रकार के चित्तों का लाभ होता है। कुशल-चित्त के साथ.... व्याख्या में तृतीय पाद है: [लाभः स्यान्नवचित्तानां क्लिष्टे चित्त इति स्मृतम् ।] [च्या २५१.१७] पणां तु कुशले चित्त तस्यैवाव्याकृतोद्भवे ॥ [या २५१.३४; पाठान्तर-सत्यवानाकृते खल] "