पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२६५

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२५२ अभिधर्मकोश [३३१] का लाभ करता है तव वह इन दो धातुओं के कुशल-चित्त का लाभ करता है । निया- मावक्रान्ति में शैक्षचित्त का लाभ; अर्हत्वफल में अशैक्षचित्त का लाभ । शेष दो चित्तों के लिये प्रतिलब्ध चित्तों की गणना हमारे पूर्वोक्त व्याख्यान से जानना चाहिये। इस पर एक संग्रह श्लोक है : "उपपत्ति, समापत्ति, वैराग्य, परिहाणि, कुशलमूलप्रतिसंधान पर पुद्गल उन चित्तों का लाभ करता है जिनसे वह असमन्वागत था।" { उपपत्तिसमापत्तिवराग्यपरिहाणिषु । फुशलप्रतिसन्धी च चित्तलाभो हिय] तद्वतः ॥ [या २५२.१७]