पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२६७

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> तृतीय कोशस्थान लोकनिर्देश नरकप्रेततिर्यंची मानुषाः षड् दिवौकसः । कामघातुः स नरकद्वीपभेदेन विशतिः॥४॥ [१] काम-रूप-आरूप्य धातु के नियम से (२.६६-७३) चित्तादि का निर्देश किया है। अब यह कहना है कि यह तीन धातु कौन हैं ? १ ए-सी. नरक, प्रेत, तिर्यक्, मनुष्य, ६ देव-निकाय--यह कामधातु है । कामधातु के अन्तर्गत चार गति (३. ४) साकल्येन हैं, देवगति का एक प्रदेश है अर्थात् ६ देवनिकाय चातु- महाराजिक, त्रायस्त्रिंश, याम, तुपित, निर्माणरति और परनिर्मितवशतिन् हैं और भाजन- लोक (३.४५) है जिसमें यह सत्त्व निवास करते हैं। कामधातु में कितने स्थान है? [२] १ सी-डी. नरक और द्वीपों के भेद से बीस । नरकप्रेततिर्यञ्चो मानुषाः षड् दिवौकसः। कामधातुः च्या २५८. २१] । बुद्धघोस के अनुसार (अत्यसालिनी, ६२) कामयातु के अन्तर्गव चार दुर्गति (नारक, तिर्यक, प्रेत और असुर, ३.४ ए देखिये); मनुष्य और ६ वेवनिकाय हैं। इस प्रकार कुल ११ प्रदेश (पदेस) हैं। काम के ६ देवों को (यफ, भूमिका, ६०३, ६०८ हेस्टिग्स, आर्ट. कॉस्मागनी ऍड कॉस्मालजी; व्याख्या में इन नामों का व्याख्यान है) पुरानो सूची है। कभी इनकी संख्या घटकर ५ होती है (त्रायस्त्रिंश.. परनिर्मितवशवतिन्, मार के अधीन, संयुत्त, १.१३३)। [प्रत्येक प्रकार के देवों के नायक होते हैं या इनका एक राजा होता है, अंगुत्तर, ४.२४२] । दोघ, १.२१५ में इनसे जर्व ब्रह्मकायिक और महाब्रह्मा है; अंगुत्तर,१.२१० में बहा कायिक और अर्व देव हैं। महानिइस, ४४ में ब्रह्मकायिक हैं (नीचे पृ.२ टि पणी ५ देखिय)। व्याख्या में नरकादि शब्दों का निरूपण है। प्रथम मतः-न न घातु से (धातुपाठ, १.८४७): "सत्व अपुण्य से वहाँ मानीत होते हैं।" व्या २५३.१९] द्वितीय मतः अतिषेध- पूर्वक 'ऋ' धातुसे (गतिप्रापणयोः' अथवा 'गतिविशेषणयोः' (व्याख्या का पाठ), १.९८३, ६. १११) । तृतीय मतः-- रम्', 'रञ्ज' धातु से [व्या २५३.२०] : "सत्त्वों का वहाँ रंजन नहीं होता" चतुर्थ मत संघभद्र का है : "सत्त्व वहाँ त्राण नहीं पाते (ऋ-प्रार) [व्या २५३. २२] स नरकद्वीपभेदेन विशतिः॥ च्या २५८.२२] उत्तरकुरु, टामस, शकल्यान, जै० २० ए० एस० १९०६, २०२; यैकोबी, इनसाइक्लोपीडिया आफ़ हेस्टिग्ज, २, ६९८ हापकिन्स, माइयालोजी, २० (आयुःप्रमाण): पार्जिटर, एंशन्ट इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडिशन, १३२, मार्कण्डेयपुराण, ३४५, फल कास्मोग्राफी, १९; के रोनो, श्वेतद्वीप, दुतटिन एस० ओ० एस०, ५.२७२। १७ .