पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२७४

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यह चित्त कामावचर है क्योंकि जो पुद्गल यह सुनता है कि अन्य इस चित्त से समन्वागत है या जो आत्मीय निर्माण-चित्त के पूर्व आस्वादन का अनुस्मरण करता है या जो निर्माण देखता है [१०] उसके वहाँ कामराग उत्पन्न होता है। अथवा यह चित्त-कामावचर है क्योंकि यह चित्त गन्ध और रस का निर्माण करता है। किन्तु रूपावचर चित्त गन्ध-रस का निर्माण नहीं कर सकता क्योंकि रूपधातूपपन्न सत्त्व इन दोनों से विरक्त होते हैं। क्या यह धातुनय एक है? धातुत्रय आकाश के तुल्य अनन्त हैं। यद्यपि नवीन सत्त्वों का उत्पाद न हो, यद्यपि असंख्य बुद्ध असंख्य सत्त्वों को विनीत करें और उनको निर्वाण का लाभ करावें, तथापि असंख्य धातुओं के सत्त्वों का क्षय कभी नहीं होता। धातुत्रय कैसे संनिविष्ट हैं? इनका तिर्यक् अवस्थान है यथा इस सूत्र से सिद्ध होता है : “यथा जब ईषाधार' अभ्र की वर्षा होती है तब आकाश से जो जल-विन्दु गिरने हैं उनमें वीचि या अन्तरिका नहीं होती, उसी प्रकार जब पूर्व की ओर लोकधातु प्रादुर्भाव और तिरोभाव की अवस्था में होते हैं तव वीचि या अन्तरिका नहीं होती। यथा पूर्व की ओर वैसे ही दक्षिण, पश्चिम और उत्तर की ओर।" सूत्र में 'ऊर्ध्व और अधः की ओर' यह शब्द नहीं हैं। एक दूसरे मत के अनुसार लोक धातु ऊर्ध्व और अधः की ओर एक दूसरे पर अवस्थित है क्योंकि अन्य सूत्रों के अनुसार लोकधातु दश दिशाओं में अवस्थित हैं। अतः अकनिष्ठ से ऊर्ध्व [११] एक कामधातु है और कामधातु से अधः एक अकनिष्ठ है। जो कोई एक कामधातु से १ २ ४ चार अनन्त हैं : आकासो अनन्तो, चेक्कवालानि अनन्तानि, सत्तकायो अनन्तो, बुद्धाणमनन्तं (अत्थसालिनी, १६०)-९.१.२६७ देखिये। पू-क्वाध (साएको ने इसका उल्लेख किया है, ८.५ बी, १०) : "महीशासकों के मत के अनुसार नव सत्त्वों की उत्पत्ति होती है (अस्त्याधुत्पन्नः सत्त्वः) जो कर्म-फ्लेमा से उत्पन्न नहीं होते।" ' विभाषा, ९३, १० में दो मतों का उल्लेख हैःलोकधातु का तिर्यक् सनिवेश, तिर्यक् और ऊर्ध्व सन्निवेश। विभाषा इनकी कठिनाइयों का भी उल्लेख करती है। दीघ, १.३३ से तुलना कीजिये। यह सूत्र संयुक्त , ३४,७ है। लोकप्रज्ञाप्ति के आरम्भ में इसका उपयोग हुआ है बुद्धिस्ट फास्मालजी, पृ.१९६) ५ ईवाधार = "अ जिसको बिन्दुएँ ईषाप्रमाण हैं।" फल्प के आरम्भ में घार अभ्र होते है। उनमें से यह एक है, शिक्षा-समुच्चय २४७, कोश, ३. ९० सो [एक "अकुलीन" नाग, वैडेल, जे० आर० ए० एस०, १८९४, ९८]। नीचे पृष्ठ १४० देखिये। पू-क्याड के अनुसार यह धर्मगुप्तों का मत है। स्थिरमति का मत, त्सा-सी (नाजिमो, ११७८) इत्यादि यथा संयुक्त, १७, ११, मध्यम, ११, ५,। लोफषातुओं के अवस्थान पर हेस्टिग्स, आर्ट , कास्मालजी, १३७.धी (महावस्तु, १. १२२, लोटस, अध्याय ११, अवतंसक) के हवाले घेखिये। नीचे ३.४५, ७३०