पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२८७

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तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश २७७ योनि का अर्थ उत्पत्ति है । नरुक्त विधि से योनि का अर्थ 'मिश्रीभाव है। उत्पत्ति में-जो सब सत्त्वों को सामान्य है--सव सत्त्व आकुल होते हैं। [२७] अण्डजयोनि : जो सत्त्व अण्ड से उत्पन्न होते हैं : हंस, क्रौंच, मयूर, शुक, सारिका आदि। जरायुजयोनि : जोसत्त्व जरायु से उत्पन्न होते हैं : गज, अश्व, गो, महिष, गर्दभ, शूकर आदि ।' संस्वेदजयोनि' : पृथिवी आदि भूतों के संस्वेद से उत्पन्न सत्त्व : कृमि, कीट, पतंग, मशक । उपपादुकयोनि' : जो सत्त्व सकृत् उत्पन्न होते हैं, जिनकी इन्द्रियाँ अविकल और अहीन हैं और जो सर्व अंग-प्रत्यंग से उपेत हैं। उन्हें उपपादुक कहते हैं क्योंकि वह उपपादन कर्म में २ ३ मालिनी, "आश्रमोत्पन्न' भिक्षुणी आदि को कथा) वहीं से लेते हैं । विसुद्धिमग्ग, ५५२ में इसी विषय का अध्ययन है। दोध, ३. २३० : चतस्सो योनियो, अण्डजयोनि, जलावज योनि, संसेदज योनि, ओपपातिक योनि मज्झिम, १.७३ : अण्डजा योनि.....। (लक्षणों के साथ); विसृद्धि, ५५२, ५५७; महाव्युत्पत्ति, ११७ : जरायुजाः, अण्डजाः, संस्वेदजाः, उपपादुकाः। १ योनि = उत्पत्ति, शुआन्चा; परमार्थ = मिश्रीभाव । परमार्थ (२३. १, फोलिओ ३५ए, पंक्ति ७)--शुक्रशोणितसन्निपातो योनिः, प्रशस्तपाद में (विज. एस. एस. पृ. २७) । वहां योनिज और अयोनिज के लक्षण दिये हैं। जरायुज--जरायुर्येन मातुः कुक्षौ गर्भो वेष्टितस्तिष्ठति । तस्माज्जाताः जरायुजाः च्या २६५.८]--मझिम--ये सत्ता वत्यिकोसमभिनिन्भिज्ज जायन्ति अयं बुच्चति जलावुजा योनि । गर्भधारण के अनेक प्रकार पर मिलिन्द, १२३, समन्तपासादिका, १.२१३, विडिश, गेवर्त, २४ संस्वेदज-भूतानां पृथिव्यादीनां संस्वेदाद् द्रवत्वलक्षणाज्जाताः..... ..[व्या २६५. मज्झिम--ये सत्ता पूतिमच्छे वा.... जायन्ति । उपपादुक सत्त्व। महान्युत्पत्ति, कोशव्याख्या, महावस्तु में उपपादुक; औपपादुक, दिव्य, अवदानशतक; औपपादिक, चरक (विडिश, गवत, १८७ में उदृत), जैन ‘उववाइय', पालि औपपातिक । उपपातिक, उपपत्तिक, ओपपातिक (सुमंगलविलासिनी में इसका लक्षण दिया है : चवित्वा उप्पज्जनकसत्ता = "जो तत्काल] नर कर पुनः उत्पन्न होते हैं।" सद्धर्मपुण्डरीक, ३९४ : "ऋद्धिवश लोक में उत्पन्न"। ग्रन्यसूची बहुत विस्तृत है, सेना, जे० एएस्, १८७६, २.४७७, विडिश, गवत, १८४, से लेकर एस० लेवी, जे० एएस, १९१२,२.५०२ तक (जिसे वेवर, चाइल्डर्स, लाएमन करते हैं।) 'उपपात' का अर्थ केवल 'उत्पत्ति है (च्युत्युपपातज्ञान, ७.२९ इत्यादि) यह आवश्यक नहीं है कि इसका यह अर्थ हो "आकस्मिक और असामान्य उत्पत्ति।" (रोज उविड्स-स्टोड) उपपादुकों का निषेध, कोश, ९ पृ. २५८ । 'अविकलेन्द्रिय; अहीनेन्द्रिय : चक्षुरिन्द्रिय हीन है जब पुद्गल काण है, विभ्रान्त है। हस्त- पादादि अंग है। अंगुल्यादि प्रत्यंग है। ५ उपपादन उपपत्तौ साधुकारित्वात्। [व्या २६५.१३] आदि उद्धृत