पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२८८

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२७८ अभिधर्मकोश प्रवीण है, क्योंकि वह सकृत् (कललादि अनुक्रम से नहीं; शुक्रशोणित-उपादान के विना) [२८] उत्पन्न होते हैं। देव, नारक, अन्तराभव ऐसे सत्त्व है।' गतियों में योनि कैसे विभक्त है ? चतुर्धा नरतिर्यञ्चो नारका उपपादुकाः। अन्तराभवदेवाश्च प्रेता अपि जरायुजाः॥९॥ ९ ए. मनुष्य और तिर्यक चतुर्विध हैं। अण्डज मनुष्य यथा शैल और उपशैल स्थविर जो क्रौंची के अण्डों से निर्जात थे। ऐसे ही मृगार माता विशाखा ३२ पुत्र थे; ऐसे ही पंचालराज के ५०० दारक थे। जरायुज मनुष्य, जैसे आज के मनुष्य। संस्वेदज मनुष्य, यथा मान्धाता', चार और उपचारु, कपोतमालिनी', आम्रपाली प्रमृति। [२९] उपपादुक मनुष्य (२. १४), प्राथमकल्पिक मनुष्य (२. १४, ३.९७ सी) । तिर्यक् भी चतुर्विध हैं। तीन प्रकार तो सामान्य अनुभव से ज्ञात हैं। नाग और गरुड़ उपपादुक भी हैं। (नीचे पृ. ३१ टिप्पणी ३) 1 २ . १ मझिम : कतमा च ओपपातिका योनि। देवा नेरयिका एकच्चे व मनुस्सा एकच्चे च विनिपातिका। चतुर्धा नरतिर्यञ्चः क्रौन्दोनि तौ--दो बनियों ने जिनका यानपान भिन्न हो गया था समुद्र तीर पर एक शौञ्ची को पाया (समधिगत) । उससे स्थविर शैल और उपशैल उत्पन्न हुए (व्या २६५ १४) । एक दूसरे ग्रन्थ के अनुसार---"शल = पर्वत, उपर्शल = शुद्रपर्वत; एक क्रौंच ने वहाँ दो अण्डे दिये जिनसे दो मनुष्य उत्पन्न हुए। अतः उनका नाम शैल, उपशैल हुआ। विशाखा के ३२ अण्डे हुए, राल्स्टन-शोफ़नर, पृ. १२५- पद्मावती के अण्डे, शावने, सैंक संत कांत, १.८१ (माता का दुग्ध)। पंचालराज को महादेवी के ५०० अण्डे उत्पन्न हुए। उन्हें एक मंजूषा में रख कर गंगा में प्रवाहित किया गया। लिच्छविराज ने उस मंजूषा को पाया और उसे उद्घाटित कर उसमें से ५०० दारक पाये । व्याख्या [२६५.१६] उपोषध राजा के सिर पर एक पिटक हुआ। उसके परिपाक-परिभेद से मान्धाता दारद उत्पन्न हुआ। मान्धाता (चक्रवती राजा, कोश, ३.९७ डी देखिये) की जान पर दो फोड़े हुए। उसके फूटने पर दो धारक, चारु-उपचार, उत्पन्न हुए । दिव्य, २१०, राल्स्टन- शीफ़नर पृ. ३७ -~-बुद्धचरित, १.२९ और कावेल के हवाले ( विष्णुपुराण, ४.२० महाभारत, ३.१०४५०), हापकिस, इपिक, १९१५, १६९ । कपोतमालिनी--ब्रह्मदत्त रजा की छाती पर एक पिटक हुआ। उससे यह दारिका उत्पन्न हुई। तुनते हैं आम्रपाली कदलोस्तम्भ से उत्पन्न हुई थी। शावने, सैंक सेंत कांत, ३. ३२५, नैजियो, ६६७ (१४८ और १७० के बीच अनूदित) में आम्रपालो और जीवक फा इतिहास देखिये राल्स्टन-शीफ़नर, १० ५२-थेरीगाथा, पृ. १२२० में उत्पत्ति उपपादुक मानी गयी है।