पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३०

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7 + प्रथम कौशस्थानः धातुनिर्देश चक्षुरिन्द्रिय, श्रोत्र, प्राण, जिह्वा, काय । [१५] पांच अर्थ जो ५ इन्द्रियों के विषय हैं-रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्प्रष्टव्य । इनमें अविज्ञप्ति (१.११) को शामिल कर रूपस्कन्ध होता है । हमने रूपशब्दादि पांच अर्थ गिनाए हैं। ९ सी-डी. इन अर्थों के विज्ञान के आश्रय रूप-प्रसाद चक्षुरादि पंचेन्द्रिय हैं। (इन्द्रिय भूत- विकारविशेष हैं) चक्षुर्विज्ञान, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा और कायविज्ञान के जो पांच आश्रय हैं और जो रूपप्रसाद और अतीन्द्रिय हैं वह यथाक्रम चक्षुरिन्द्रिय, श्रोत्र ,प्राण', जिह्वा', कार्यन्द्रिय हैं। यथा भगवत् ने कहा है"हे भिक्षुभो ! चक्षु आध्यात्मिक आयतन भौतिक प्रसाद रूप...२ अथवा इसका अर्थ इस प्रकार हो सकता है: ९ सी-डी. इन इन्द्रियों के विज्ञानों के आश्रय अर्थात्..... चक्षुर्विज्ञान आदि के आश्रय-यह अर्थ प्रकरण अन्य (१३ ए १०) का अनुवर्तन करता है। प्रकरण में है:- "चक्षुर्विज्ञान क्या है? यह प्रसादरूप है जो वक्षु के विज्ञान का आश्रय है।" रूपं द्विधा विंशतिघा शब्दस्त्वष्टविधो रसः । पोढा चतुर्विघो गन्ध : स्पृश्यमेकादशात्मकम् ॥१०॥ हम रूपायतन से आरम्भ कर ५ अर्थों का अव विचार करते हैं। [१६] १०ए. रूप द्विविध है, रूप २० प्रकार का है।' १. रूप वर्ण और संस्थान है। वर्ण चतुर्विध है:- नील, लोहित, पीत, अवदात । अन्य वर्ण, वर्ण-चतुष्टय के भेद हैं। संस्थान (४.३ सी) अष्टविध है :- दीर्घ, हस्व, वृत्त, परि- मंडल, उन्नत, अवनत, शात, विशात । २. रूप के २० प्रकार हैं:- ४ मूल जाति के वर्ण, ८ संस्थान, ८ वर्ण-अन, धूम, रज, महिका, छाया, आतप, आलोक, अन्धकार .! कोई नभस् को भी जो वैडूर्य-भित्ति के आकार .. २ १ तद्विज्ञानाश्रया रूपप्रसादश्चक्षुरादयः॥ [व्याख्या २३.३२] पांच इन्द्रियां अतीन्द्रिय, अच्छ, इन्द्रियग्राह्य-वस्तु व्यतिरिक्त, रूप-स्प्रष्टव्यादि-व्यतिरिक्त हैं। इनके अस्तित्व का ज्ञान अनुमान से होता है। जिन्हें लोकभाषा में चक्षुरादि कहते हैं वह इनके अधिष्ठान हैं [व्याख्या २४.१३] (१.४४ ए-वी)। पसादचक्ख, चक्खुपसाद पर धम्मसंगणि, ६१६, ६२८ देखिए। १.३५ में उद्धृत सूत्र देखिए-विभंग, १२२, साइकालोजी १७३ से तुलना कीजिए। पहला अर्थ विभाषा, ७१, १२ के अनुसार है। १ रूप द्विवा विंशतिधा [२५.६, २५.१३-व्याख्या में 'द्विषा' के स्थान म 'द्विविधा' पाठ प्रामादिक है। विभाषा, १३.९; महाव्युत्पत्ति, १०१, धम्मसंगणि, ६१७ से तुलना कीजिए। २ सौत्रान्तिक यह नहीं मानते कि संस्थान वर्ण से द्रव्यान्तर है। न