पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३१६

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$ 0$ अभिधर्मको प्रापडायतनोत्पादात् तत्पूर्व त्रिकसंगमात् । स्पर्शः प्राक् सुखदुःखादिकारणज्ञानशक्तितः ॥२२॥ २१ ए. अविद्या पूर्वजन्म की क्लेश-दशा है। [६३] [अविद्या से केवला अविद्या, ३. पृ.८४,८८; ५. १२ अभिप्रेत नहीं है, न क्लेशसमु. दाय, “सर्वक्लेश" अभिप्रेत है], किन्तु पूर्व जन्म की सन्तति (स्वपंचस्कन्धों के सहित)अभिप्रेत है जो क्लेशावस्था में होती है। वस्तुतः सव क्लेश अविद्या के सहचारी होते हैं और अविद्यावश उनका समुदाचार होता है। यथा राजागमन वचन से उसके अनुयात्रिकों का आगमन भी सिद्ध होता है। २१ बी. संस्कार पूर्वजन्म की कर्मावस्था है। पूर्व भव की सन्तति पुण्य-अपुण्यादि कर्म करती है। यह पुण्यादि कर्मावस्था संस्कार है। २१ सी. विज्ञान प्रतिसन्धि-स्कन्ध है। प्रतिसन्धि-क्षण या उपपत्तिभव-क्षण में कुक्षि के पाँच स्कन्ध । २१ डी-२२ ए. इस क्षण से लेकर षडायतन की उत्पत्ति तक नामरूप है। कुक्षि के पंच-स्कन्ध, उपपत्ति-भव से लेकर जब तक पडिन्द्रियों की अभिव्यक्ति नहीं होती। यह कहना उचित होगा : “चार आयतनों के उत्पाद के पूर्व....." [क्योंकि मन-आयतन और कायायतन का उत्पाद उपपत्ति-भव में ही, प्रतिसन्धि-क्षण में ही, होता है। किन्तु . १ पूर्वश्लेशदशाविद्या संस्काराः पूर्वकर्मणः। [व्या २८४. ३३] सन्धिस्कवास्तु विज्ञानं नामरूपमतः परम् ॥२१ प्राक पडायतनोत्पादात् तत्पूर्व त्रिकसंगमात् । [च्या २८५.५] स्पर्शः प्राक् सुखदुःखादिकारणज्ञानशक्तितः।। २२ [व्या २८५०८ वित्तिः प्राइ मयुनात् तृष्णा भोगमैथुनरागिणः। व्या २८५.१५] उपादानं तु भोगानां प्राप्तये परिधावतः॥२३ स भविष्यद्भवफलं कुरुते कर्म तद्भवः। [व्या २८५.२५] प्रतिसन्धिः पुनर्जातिर्जरामरणमाविदः ॥२४ व्या २८५ . ३२] इन लक्षणों के लिये, थियरी आव ट्वेल्व काजेज,४१, सान सांग फ़ा स, क्लापराय द्वारा अनूक्ति, फ़ो-कुए- को, २८६----सुबन्धु ने जिस बाद का व्याख्यान किया है उसका यह बहुत कुछ अनुसरण करते हैं किन्तु विवृति को आवश्यकता है, यथा स्पर्श का यह वर्णत है : "गर्भनिष्क्रमण से लेकर तीन या चार वर्ष की अवस्था तक वह चिन्तन नहीं कर सकता और न जोवन के सुख-दुःख को समझ ६ मूल (इन्द्रियाँ) स्पर्श से ६ अंकुर (विषय, आलम्बन) के अनुरूप हैं। विभाषा २३, १३-अविद्या क्या है ? --यह कहना नहीं चाहिये कि सब अतीत क्लेश अविधा है क्योंकि इस प्रकार अविद्या के स्वलक्षण को हानि होगी किन्तु यह फहना चाहिये कि यह पूर्व क्लेश की दशा [या अवस्था है । संस्कार क्या है ?--अतीत कर्म को अवस्था। विज्ञान क्या है ? प्रतिसन्धिचित्त और वह जो उसके सहगत है। नामरूप क्या है ? -प्रतिसन्धिचित्त के पश्चात् और चार त्यो इन्द्रियों की उत्पत्ति के पूर्व । कान्द्रिय का लाभ उपपत्ति-भव में ही होता है] इस अन्तराल में षडायतन के पूर्ण होने के पूर्व पाँच अवस्थायें हैं : कल्ल, अर्बुद पेशिन, धन, प्रशाखा-इनका समुदाय नामरूप को वशा है। षडायतन क्या है ? जब चार रूपोन्द्रियों को उत्पत्ति होती है तब घडायतन परिपूर्ण होते हैं। प्रशाखा की अवस्था में चक्षुरावि इन्द्रिय स्पर्श को आश्रय देने में समर्थ नहीं है । कयावत्य को अर्थकथा, १४.२, कोश,२.१४ । सकता है यद्यपि २