पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३४०

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अमिधर्मकोश मान' में तृष्णा, दृष्टि, मयना, अभिनिवेश और अनुशय के प्रहाण और परिज्ञान से मैं निश्छाय परिनिर्वाण को जानता और देखता हूँ।" यह सूत्र प्रदर्शित करता है कि मयना-हम यहाँ एक वचन का प्रयोग करते हैं क्योंकि यह जाति-निर्देश है--अस्मिमान से भिन्न है।] [व्या ३०३.३] [९४] माना कि एक 'मयना' है किन्तु यह आप किस कारण से परिच्छिन्न करते हैं कि यह अविद्या है ? भदन्त अपने अभिप्राय को स्पष्ट करते हैं : क्योंकि इसे कोई अन्य क्लेश नहीं कह सकते इसलिये कि तृष्णा, दृष्टि, अस्मिमान से इसका पृथक् वचन है।' किन्तु क्या यह अस्मिमान से भिन्न अन्य मान नहीं हो सकता? [मान षड्विध या सप्तविध है, ५.१०]-किन्तु इसका विचार करने में बहुत कहना पड़ेगा। इसलिये इसे यहीं रहने दें। (तस्मात् तिष्ठत्वेतत्) 1 [व्या ३०३.९] नामरूप में से रूप का निर्देश विस्तार से पहले हो चुका है (१.९) । नाम स्वरूपिणः स्कन्धाः स्पर्शाः षट् सन्निपातजाः । पञ्च प्रतिघसंस्पर्शाः षष्ठोऽधिवचनाह्वयः ॥३०॥ ३० ए. नामन् अरूपी स्कन्ध हैं।' वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान यह चार अरूपी स्कन्ध 'नामन्' कहलाते हैं क्योंकि नामन् का अर्थ है 'जो झुकता है', नमतीति नाम व्या ३०३.२०] । अरूपी स्कन्ध नामवश, इन्द्रियवश और अर्थवश अर्थों में नमते हैं [अर्थात् प्रवृत्त होते हैं, प्रवर्तन्ते, उत्पन्न होते हैं, उत्पद्यन्ते । 'नामका' इस पद में नाम शब्द का ग्रहण उस अर्थ में है जो लोक में प्रसिद्ध है। इसका अर्थ 3 ३ ४ ३ अहंकारसमकारमानानुशय, संयुत्त, ३.८०, इत्यादि; अस्मिमान, अस्मीति मान, ३. १५५. तिब्बती भाषान्तर से ज्ञापित होता है कि मूल शब्द 'निश्छाय' है जो पालि के 'निच्छात' के अनुरूप है। इस शब्द पर रोज डेविड्स स्टोउ देखिये। इसके साथ प्रायः निब्बुत, सीतीभूत आदि शब्द व्यवहुत होते हैं। अंगुत्तर, ५.६५ भी देखिये। मयना पुनः सौत्रान्तिकैरविद्या प्रकारभिन्ना वर्ण्यते, मानो वा। [व्या ३०२.३३] । अथ नामरूपम् [व्या ३०३ . १३]--यहाँ संस्कार और विज्ञान का निर्देश होना चाहिये। ३.३६ ए वेखिये। नामस्वरूपिणः स्कन्धाः--विभाषा, १५, ५, थियरी आफ वेल्व काजेन १६-१८--२.४७ देखिये। नामवश अख्यो स्कन्ध अप्रत्यक्ष अर्थों में (अप्रत्यक्षेषु अर्थेषु) प्रवृत्त होते हैं (प्रवर्तन्ते): "इस नाम का यह विषय (या अभिधेय), अर्थ है।" इंद्रियवश प्रत्यक्ष अर्थों में अरूपी स्कन्ध उत्पन्न होते हैं (उत्पद्यन्ते) । अर्थवश नामों के प्रति अरूपो स्कन्धों का प्रवर्तन होता है : "इस अर्थ का यह नाम है।" अत्यसालिनी, ३९२, एक्स्पाजिटर, ५००-५०१ से तुलना कीजिये--नामों के प्रभव पर बुधोसविभाषा, १५, ५. 3