पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३६५

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तृतीय फोशस्थान : लोकनिर्देश इसी प्रकार स्पर्शादि अन्य आहारों का यथायोग चतुष्कोटिक करना चाहिये। क्या ऐसे स्पर्श, मनः संचेतना, विज्ञान हैं जो विना आहार हुए इन्द्रियों का उपचय और महाभूतों की वृद्धि करते हैं ?--हाँ जो अन्यभूमिक हैं और जो अनानव है।' जो परिभुक्त होने पर भोक्ता को बाधा पहुंचाता है वह भी आहार है। वैभाषिकों के अनुसार परिभुक्त वस्तु दो क्षणों में आहार-कृत्य सम्पादित करता है : १. भोजन वेला में यह क्षुत्-पिपासा को शान्त करता है ; २. परिपाक होने पर यह इन्द्रियों का उपत्रय और महाभूतों की वृद्धि करता है (विभापा, १३०,७)। [१२८] इससे प्रश्नान्तर उत्पन्न होता है। विविध गति और योनियों में कितने आहार होते हैं ?--सवमें सव---यह कसे कहते हैं कि नरक में कवडीकार आहार होता है ? क्या प्रदीप्त अयः पिण्ड और क्वयित ताम्र बाहार नहीं हैं ? -यदि ऐसा है , यदि व्यावाथ (व्यावाघाय) माहार है तो लिंगीतिपर्याय , पृ० १२७ नोट १ का चातुष्कोटिक बाधित होता है और प्रकरण अन्य (७,५) के वचन भी बाधित होते हैं। प्रकरणग्नन्य (७,५) में कहा :"कबडीकार आहार क्या है ?-~-वह कवड जिनके कारण इन्द्रियों का उपचय और महाभूतों की वृद्धि और यापना होती है," एवमादि-नरक में कबडोकार आहार का अस्तित्व है, इस वाद का इन वचनों से विरोध नहीं है। वास्तव में यह वचन उपचयाहार के अभिप्राय से कहे गये हैं। किन्तु भोजन के जो पदार्य अपचय करते हैं उनको भी नरक में आहार का लक्षण प्राप्त है : यह कम से कम कुछ काल के लिये क्षुत्पिपासा के प्रतिधात में समर्थ हैं। पुनः प्रादेशिक नरक में (३.५६ सी) कबडोकार बाहार उसी तरह है जैसे मनुष्यों में। अत : कवडीकार आहार का अस्तित्व पाँच गतियों में है। कवडीकार आहार के प्रसंग में हम इस सूत्र की समीक्षा करते है : "जो काम से विरक्त १०० वाह्यक ऋषियों को दान देता है और जो एक जम्बुपण्डगत पृथग्जन को दान देता है, इन दोनों के दान में यह दूसरा पहले की अपेक्षा महाफल का देनेवाला है"। "जम्युषण्डगत पृथग्जन" का क्या अर्थ है? ५ स्यात् स्पर्शादीन प्रतीत्येन्द्रियाणाम् उपचयो भवति महाभूतानां च वृद्धिः। न च ते आहाराः। स्यात् । अन्यभूमिकान् मनास्रवांश्च । (विनापा, १२९, १४) समाधिज औपचारिक रूप पर १. अनुवाद पृष्ठ ६९ शुआन चाड के अनुसार-व्याख्या : यश्चेह परिभयतः पायालोकारो भोक्त- वामादयाति त किमाहारः। सोऽप्याहारः: आपाते भोजनवेलायाम् अनुग्रहात् । र प्रवीप्तायापिण्ड, स्वपिसताम्र--उदाहरण लिए पंचशिक्षासूत्र, फिसर इस आफ फंजूर, २४१ देखिये। नरफ, माहार पर बसुमित्र, महातांधिक, २७ वां याद । २ उपचयाभिसन्धिवचनादविरोषः। व्याख्या : जो उपचय के लिए है वह मुगाय माहार है। जाहारलक्षणप्राप्तत्वात सूत्र का उद्धार हो सकता है ४.११७ देपिय] : यश्च तिरंग्योनिगतानां शताय दानं दद्यात् । यदपतन दुशीलाय मनुष्यभूताय दान धान् । अतोदानादिदं दानं महांफन्तरम् ॥ यदव दुगोलाना मनुष्यभूतानां पाताय दानं दद्यात् । यश्चकम्मशीलमसे मनुष्यभूताय ..] यश्च ब्राहकानां कामयीतरागाणां योग नाय 7 ..