पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३७९

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२ तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश सार्घ त्रियोजनं त्वेकं प्राग्विदेहोर्धचन्द्रवत् । पार्श्वनयं तथास्यकं साधं त्रिशतयोजनम् ॥५४॥ गोवानीयः सहस्राणि सप्तसार्धाति मण्डलः । सा द्वे मध्यमस्याष्टौ चतुरत्रः कुतः समः ॥५५॥ ५३ बी-५५ डी. वहाँ जम्बुद्वीप है। इसके तीन पाव २००० योजन के हैं। यह शकट की प्रकृति का है । एक पार्श्व ३१ योजन का है, वहाँ प्राग्विदेह है, यह अर्धचन्द्र के समान है। इसके नि पार्श्व जम्वु के समान हैं और एक ३५० योजन है। वहाँ गोदानीय है। यह ७,५०० योजन , मण्डलाकार है, तिर्यक् २,५०० है। वहाँ कुरु है। यह ८,००० है, चतुरस्र और सम है। बाह्य समुद्र में मेरु के चार पाश्चों के अनुरूप चार द्वीप हैं । १. जम्बुद्वीप के तीन पार्श्व २,००० योजन के हैं, एक पार्श्व ३३ योजन का है। इसलिए उकी माकृति शकट की है। मध्य में कांचनमयी भूमि पर प्रतिष्ठित वज्रासन हैं जिस पर धिसत्व अपना आसन वनोपम समाधि (६.४४ डी) के साक्षात्कार के लिए लेते है र अर्हत् तथा बुद्ध होते हैं। कोई दूसरा प्रदेश, कोई दूसरा आश्रय बोधिसत्व की

४६] वजोपमसमावि को सहन करने में समर्थ नहीं है।

२. पूर्व विदेह की आकृति अर्धचन्द्र की है। इसके २००० योजन के तीन पार्श्व हैं। अतः का परिमाण वही है जो जम्बु के दीर्व पावों का है और एक पाश्र्व ३५० योजन का है। ३. गोदानीय जो मेरु के पश्चिम पार्श्व के सन्मुख है चन्द्र के समान मण्डलाकार है । यह वितः) सात हजार ५०० योजन है; मध्य में २५०० है। ४. मेरु के उत्तर पार्श्व के सन्मुख कुरु या उत्तर कुरु है। इसकी आकृति आसन की है। चतुरस्र है। इसका प्रत्येक पार्श्व २००० योजन है। पार्श्वतः यह ८,००० है। यह कहने से कुरु 'सम' है कारिका यह सूचित करती है कि चारों पाश्वों का परिमाण एक है।' जैसा द्वीप वैसी वहाँ निवास करने वाले मनुष्यों की आकृति होती है।' तत्र तु। जम्बुद्वीपो द्विसाहस्रस्त्रिपार्श्वः शकटाकृतिः। साध नियोजनं स्वेकम् प्राग्विदेहोऽर्धचन्द्रवत् । पार्श्वत्रयं तथास्यक सार्धं त्रिशतयोजनम्॥ गोदातीयः सहस्राणि लप्त लार्वानि मण्डलः। जाईं द्वे मध्यमस्याष्टौ चतुरस्नः कुतः समः।। राकट' की आकृति, दीघ, २. ३५२ देखिये। बजासन, ४. ११२ बी, अनुवाद पृ. २३१ टि० । कोओकुगा सौ-यू फो, वाटरसं, २. ११४ उद्धृत करते हैं; शरच्चन्द्रदास, ७५१ फूशे, इकानोग्रंफो २. १५-२१, वील कटना २१. कहते हैं कि इस द्वीप में चक्षु शब्द सुनता है, श्रोत्र वर्गादि देखता है। उत्तर फुरुओं सं० (हाइपरसोरिमन्त) पर, ३. ७८, ८५, ९०, ९९ सो, ४. ४३, ८२, ९७, पील कटना ३७. हेस्टिग्स ३. ६८७ : व्याख्या में एक रोचक सूचना है भूमिवशात् सत्वानां वैचित्र्यम् हिमवद् विन्ध्यवासिना करातशवराणां गौरश्यामते-भूमित्रज्ञ सत्वों का वैचित्र्य होता है। हिमवत के निवासो र्थात् किरात गौर होते हैं। विन्ध्यवासी अर्थात् शबर कृष्ण होते हैं।-३००० द्वीपों २४