पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३८०

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३७० अभिधर्मकोश हा विदेहाः कुरवः कौरवाश्चामरावराः। अष्टौ तदन्तरद्वीपाः शाठा उत्तरमन्त्रिणः ॥५६॥ ५६. ८ अन्तर द्वीप हैं : देह, विदेह, कुरु, कौरव, चामर और अवर चामर, शाठ और उत्तरमन्त्रिन् । [१४७] इन द्वीपों के नाम वहाँ के निवासियों के नाम पर हैं। देह और विदेह पूर्व विदेह के पार्श्व में हैं । कुरु-कौरव उत्तर कुरु के पार्श्व में हैं। चामर और अवचामर जम्बुद्वीप के पार्श्व में है। शाठ और उत्तरमन्निन् गोदानीय के पार्श्व में हैं। इन सब द्वीपों के निवासी मनुष्य हैं। एक मत के अनुसार इनमें से एक में (अर्थात् चामर में) सदा राक्षस निवास करते हैं। इहोत्तरेण कीटाद्रिनवकाद्धिमवांस्ततः। पञ्च शद् विस्तृतायाम सरोऽग्गिन्धमादनात् ॥५७॥ ५७. यहाँ नौ कीटाद्रियों के उत्तर में हिमवत् है । उत्तके परे किन्तु गन्धमादन पर्वत के इस ओर ५० योजन आयाम का गम्भीर सरोवर है। इस जम्बुद्वीप में उत्तर की ओर जाकर तीन कीटाद्रि मिलते हैं (इनको कीटाद्रि इसलिए कहते हैं क्योंकि इनकी कीट की आकृति है); तव तीन और कीटाद्रि मिलते हैं, पुनः तीन अन्य । अन्त में हिमवत् है। 1 ४ के मनुष्यों को मुखाकृति पर सेको शूरंगम सूत्र, २ वी ११ का उल्लेख करते हैं; लेवी रामायण ४७ में सद्धर्मस्मृति भी देखिये। वेहा विदेहाः कुरवः कौरवाश्चामरावराः। अष्टौ तदन्तरद्वीपाः शाठा उत्तरमन्त्रिणः॥ महाव्युत्पत्ति, १५४. विभाषा, १७२, १३---अन्तर द्वीप के चारों ओर ५०० छोटे द्वीप हैं। इनमें मनुष्य या अमनुष्य निवास करते हैं या यह निर्जन हैं.. ....। आरम्भ में मनुष्य आर्यभाषा बोलते थे। बहुत बाद जब उन्होंने पान भोजन किया उनमें वैचित्र्य उत्पन्न हुआ और शाठ्य की वृद्धि से अनेक भाषायें हो गई। ऐसे भी मनुष्य हैं जो बोलना नहीं जानते।. बील कैटीन। ३५ में दीर्घ, संघभद्र (न्यायानुसार) आदि के अनुसार ४ महाद्वीप और . अन्तरद्वीपों के सम्बन्ध में अनेक सूचनायें हैं।--संघभद्र के अनुसार देह, विदेह, कुरु और कौरव निर्जन थे। विभाषा, दूसरा मत ("नव विभाषा शास्त्र", बील कटीना ३५) इहोत्तरेण कीट दिनवकाद्धिमवांस्ततः । पंचाशद् वि । ] सरोऽवग्गिन्धमादनात्॥ गन्धमादन आदि पर्वत, हापकिन्स, एपिक माइथालोजी ९. लोचव, परमार्थ और शुआन-चाङ कोटाद्रि का अर्थ 'कृष्णपर्वत' करते हैं।-किन्तु परमार्थ में एक विवृति है: "इन्हें कोटाद्रि कहते हैं (१. व्याख्या १४२) क्योंकि ये अनुन्नत समतल हैं।" व्याख्या में कीटाद्रिनवकात् की यह विवृति है : कीटाकृतीनाम् पर्वताना नवकात् ।