पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश इनकी छाजन लोहे की है। इनकी भूमि ज्वलित और तेजोयुक्त लोहे की है। ये यनेक शत योजन तक दीर्घ ज्वालाओं से व्याप्त है। [१५०] १६ उत्सद क्या है ? कुलं कुणपं व क्षुरमार्गादिकं सदी। तेषां चतुर्दिशं शीता अन्येऽष्टाचर्बुतादयः ॥५९॥ ५६ ए-सी . इन नरकों को चार दिशामों में कुकूल, कुणप, क्षुरमार्ग आदि नदी।' । 17 1 इत्येते अष्टी निरया आख्याता दुरतिक्रयाः। आकीर्णा रौद्रकभिः प्रत्यई घोडशोत्सदाः॥ चतुःस्कन्धा *श्चतुराि विभवता भागशो मिला। अयः प्राकारपर्यन्ता अयसा प्रतिकुन्जिताई। तेषाम् अयोमयी भूमिज्वलिता तेजसा युता। (अनेकयोजनशतवालाभिस्तिष्ठति) स्फुटा॥ दीर्घ, १९,१९, एकोत्तर, ३६,४, संयुक्त, ४७, ४--मैंने बुद्धिस्ट कास्मालोंजी में समान चाक्यों को सविस्तर उद्धृत किया हैः १ अंगुत्तर, १. १४१, मज्झिम, ३. १८२ पेतवत्थु, २१, ६५, कथावत्यु, २०. ३२ जातक, ५. २६६, ३ महावस्तु, १.१ और ३.४५४; ४. लोकप्रज्ञाप्ति (म्दों, ८९ बी और १०४ बी, सूत्र और विवृति)

  • व्याख्या का पाठः चतुःस्कन्धा इति चतुःप्राकारा इत्यर्थः। चतुः संनिवेशा इत्यपरे। अन्यत्र

'चतुः कर्णाः' (महावस्तु), चतुक्कण्णा (जातक) अन्यत्र 'चतुर्भागाः' (लोक प्रजाप्ति के अनुसार), इस टीफा के साथ चार भाग दक्षिण आदि हैं लेनार का यह अनुवाद हैः ये चार भागों में है। इनके चार द्वार हैं. यह चीनी अनुवादकों का अर्थ है:"चार पार्श्व और चार द्वार"। भाष्य प्राकार, भित्ति, ईंटों का काम । । सव का यही पाठ है।-- सेनार "ये पृथक् हैं और मित हैं, प्रत्येक का स्थान लिप्त है। मैं लोक प्रज्ञाप्ति की टीका का अनुवाद देता हूँ।

  • अयः प्राकार परिक्षिता इत्यर्थः (व्याख्या)

सोपरिष्याच्छादितः । अयसा पियितद्वारा इत्यपरे (व्याख्या)-से "लोहे फो छ..बाला"। स्कुटा इति व्याप्ताः (व्याख्या)। लोक प्रज्ञाप्ति को टीका के अनुसार अवीचि दृष्ट है। पाठ इस प्रकार होगा.. तिष्ठति पालि संस्करणों में भूमि अभिप्रेत है । समन्ता योजनसतं फुटा (फरित्या, दूसरा पाठ) तित्ति परे प्रिनिलकी ने दिव्यादान, पृ० ३७५ में बाल पंडित सूत्र का एक अंश पाया है। इसमें उल्लिखित है कि "ललित लोहे की भूमि तप्त होने पर एक जाता बन जाती है सुरनफ इंट्रोडक्शन ३६६)। यही हमारे निरयों का भूमितल है। मुलं कुणयं चैव क्षुरनादिर नदी। दरकलोक के विकास पर प्रिजिलुस्की लीजेंड अद् अशःक, १३०, और देखिए फोगर, फै मैदा हु वांदुर. ५१८, हेमिंग्स इन इक्लोपीडित ११३ (विविलियोग्रेफी भी देखिये)। देवदूत सुत्त में (अंगुत्तर, १.१३८, गझिम, ३.१७८) महानिरय के चार द्वार हैं जिनके सम- तेषां चतुदिक्षम्