पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३८८

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अभिधर्मकोश मरकों का मूल स्थान नीचे है। तिर्यक के तीन स्थान' है-भूमि, जल, वायु । उनका [१५६] मूलस्थान महोदधि है । जो तिर्यक् अन्यत्र पाये जाते हैं वे अधिक हैं ? प्रेतों का राजा यम कहलाता है। उसका निवास -गृह प्रेतों का मूल निवास है। यह जम्बुद्वीप से ५०० योजन नीचे है। यह ५०० योजन गहरा और चौड़ा है । जो प्रेत अन्यत्र पाये जाते हैं वे अधिक हैं। प्रेत एक दूसरे से बहुत भिन्न होते हैं : कुछ ऋद्धि प्रभाव से समन्वागत होते हैं और उनका देवों के समान अनुभाव होता है। प्रेतों के अवदान देखिये।' सूर्य और चन्द्र किसमें प्रतिष्ठित हैं ? --बायु में। सत्वों के कर्मों के सामूहिक बल से वे वायु उत्पादित होती है जो अन्तरिक्ष में चन्द्र, सूर्य और तारकों का निर्माण करती हैं । यह सब नक्षत्र मेरु के चारों ओर भ्रमण करते हैं मानों जल के भंवर से आकृष्ट हुये हैं। यहाँ से चन्द्र और सूर्य का क्या अन्तर है ? अर्धेन मेरोश्चन्द्राको पंचाशत्सकयोजनौ अर्धरात्रोऽस्तगमनं मध्यान्ह उदयः सकृत् ॥६०॥ ६० ए. चन्द्र और सूर्य मेरु के अर्थ में है। चन्द्र और सूर्य की गति युगन्धर के शिखर के समतल पर होती है। उनका परिमाण क्या है? [१५७] ६० वी. ५० और ५१ योजन।' चन्द्रबिम्ब ५० योजन का है, सूर्य का बिम्ब ५१ योजन का है। २ व्यक्ति विशेष हैं। इसी प्रकार मंत्रकन्यकावदान के नायक। जिस बोधिसत्व को अवीचि में जाना होता है वह प्रत्येक नरफ में जाता है (महावस्तु १.१०३ः "पृथक् कोठरी में नरक", बार्थ, जर्नल द सावाँ पृ. २३; किन्तु २. ३५०, इस नरक में अग्नि होती है, २. ३५०) । ' विभाषा, १३३, १० में इस मत का उल्लेख है कि जो तिर्यक् मनुष्यों के बीच रहते हैं वे सत्व नहीं हैं। वे तिर्यक सदृश हैं, दुग्धादि देते हैं हम देखेंगे कि लोकसंवर्तनी पर तिर्यक् संवर्तनी को परिसमाप्ति दो बार में होती है। पहले दूसरे तिर्यक् विनष्ट होते हैं। पश्चात् जो तिर्यक् मनुष्यों के साथ रहते हैं वे उनके साथ विनष्ट होते हैं। (३.१० ए) यम की नगरी ८६००० योजन पर है, हापकिन्स, जे ए ओ एस, ३३. १४९ । महिद्धिक पेत, पेतवत्यु, १. १०; कथावत्यु, २०.३; अवदानशतक, ४६-कोर, ३. पृ. ११ अवदानशतक का चतुर्थ दशक; सद्धर्मस्मृत्युपस्थान, अध्याय ४, ( नंजिभो ६७९); बील कैंटीना ६७ के प्रभव। मनुष्यचरिष्णु प्रेतों का वर्णन, लोटस, ३. स्टोड पेतवत्थु, लाइपजिग १९१४ । प्रेतों का विवरण, कोश, ३. ९ डी. ८३ सी. परमार्थ और शुआन-चाङ सहमत नहीं हैं।-५ वायु सूर्य को गति देते हैं, बील कंटीना अर्धेन मेरोश्चन्द्राकों पञ्चाशत् सैकयोजनौ विसुद्धिमन्ग ,४१७-४१८ में (वारेन, ३२४, स्पेंस हार्डी, लीजेंड्स २३३) चन्द्र ४९ और सूर्य ५० योजन है। ३