पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३८९

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तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश ३७९ नारकों का सव से छोटा विमान एक क्रोश परिमाण का है (३.८७ सी)। [सब से बड़ा १६ योजन का है सत्वों के कर्मों के आधिपत्य से सूर्य विमान के अधर और वाह्य एक तेजस चक्र होता है जो सूर्यकान्तात्मक है और चन्द्र विमान के लिये एक आप्य चक्र होता है जो चन्द्रकान्तात्मक है। इनका कृत्य यथासम्भव चक्षु, काय, फल, पुष्प, शस्प, ओपधि का उत्पाद, स्थिति और विनाया है। चतुर्दीपक में (३.७३) केवल एक सूर्य और एक चन्द्र होता है। किन्तु चार द्वीपों में मूर्य अपने कृत्य को एक ही काल में संपन्न नहीं करता। प्रावृण्मासे द्वितीयेऽन्त्यनवम्यां वर्धते निशा। हेमन्तानां चतुर्थे तु हीयतेऽहविपर्ययात् ॥६१।। लवशी रात्र्यवद्धी दक्षिणोत्तरगें रखी। स्वच्छाययार्कसामीप्याद् विकलेन्दुसमीक्षणम् ॥६२॥ ६१ ए-बी अर्वरात्र, अस्तगमन, मध्याह्न और उदय एक ही समय में होते हैं।' जव उत्तर कुरु में अर्धरात्र होता है तब सूर्य पूर्व विदेह में अस्त होता है, जम्बुद्वीप में मध्याह्न होता है, गोदानीय में सूर्योदय होता है । इसी प्रकार दूसरों में भी योजना करनी चाहिए। (दीयं, २२, १३)। सूर्यगमन के वैचित्र्यवश दिन और रात बढ़ते घटते रहते हैं। ६१ सी-६२ वी. वर्षा ऋतु के दूसरे मास में द्वितीय पक्ष की नवमी से रात बढ़ती है। [१५८] हेमन्त के चतुर्य मास के द्वितीय पक्ष की नवमी से घटती है। दिन के लिए इसका विपर्यय है । ज्यों ज्यों सूर्य दक्षिण या उत्तर की ओर जाता है त्यो त्यों रात्रि और दिन की लवशः वृद्धि होती है। भाद्रपद, शुक्लपक्ष की नवमी से रात्रि की वृद्धि होती है और फाल्गुन शुक्लपक्ष की नवमी से रात्रि का ह्रास होता है। दिन के लिये इसका विपर्यय है : जब रातें बड़ी होती है तय दिन छोटे होते है और जव रात्रि छोटी होती हैं तब दिन बड़े होते हैं-क्रमशः दिन और रात की वृद्धि और ह्रास उसी मात्रा में होते हैं जिस मात्रा में सूर्य जम्बुद्वीप के दक्षिण या उत्तर यात्रा करता है। तिब्बतीभाषान्तर में नहीं है। परमार्यः सूर्यचक्र अधोमुख बाह्यपर्यन्त . ..! विमान चक्र से भिन्न है। विमान के परिमाण पर वील केंटीना, ६८। संस्कृत पाठः तंजस चक्र जिसका अर्थ "सूर्यकान्तात्मक" दिया है। संस्कृत पाठ निस्सन्देह 'आप्य है अर्थात् चन्द्रकान्तात्मक। अर्थरात्रोऽस्तगमनम् मध्या (ह्र उदयः समयम)। प्रावृण्मासे द्वितीयोऽन्त्यनवम्चो वर्वते निमा। हेमन्तानां चतुयें तु हीयतेऽहविपर्ययात् । लयशो राज्यहर्षदो दक्षिणोतरने शुआन-बाड़ में इतना अधिक है, "कितनी वृद्धि होती है। एक लय की।"-'लय' मुहूर्त का तीसवाँ अंश है, मुहूर्त दिन का तीसरा भाग है। 'लव' चार मिनट से बराबर है, विभाधा, २ 1 . ५ It रयो।