पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३९०

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करते हैं।-दिव्य, २१९, महावस्तु, १.३१, लोकप्रज्ञाप्ति, पत्रा २८ ए-४७ बी, बुद्धिस्ट विभाषा का पहला मत यह है कि पार्श्व २०००० योजन के हैं। दूसरा मत यह है कि पाश्र्व पर्वतों के उच्छाय और धन सम है। इन वादियों का यह अभिप्राय है कि मध्यभाग का अभि सन्धान कर ऐसा कहा है। ऊपर पृ० १६०, टिप्पणी दो देखिये (मध्यभागमेवाभिसमी- सुदर्शन पर दिव्य, २२०; धम्मपद, ३० को अर्यकथा (बुद्धिस्ट लीजेंडस बलिंगामेकृत) अभिषर्मकोश मध्ये साध द्विसाहस्रपार्श्वम् अध्यधंयोजनम् । पुरं सुदर्शनं नाम हेमं चित्रतलं मृदु ॥६६॥ सार्घ द्विशतपावोऽत्र वैजयन्तो वहिः पुनः। तच्चत्ररथपारुष्यमिश्रनन्दनभूषितम् ॥६७।। विशंत्यन्तरितान्येषां सुभूमीनि चतुर्दिशम् । पूर्वोत्तरे पारिजातः सुधर्मा दक्षिणावरे ॥६८।। ६५-६८. मेरु शिखर पर अयस्त्रिंश है। इस शिखर के दिक् ८०,००० योजन हैं। विदिशाओं में चार कूट हैं जहाँ वज्रपाणि निवास करते हैं--मध्य में २५०० योजन के पाश्वो वाला, १।। योजन ऊंचा, सुदर्शन नाम का पुर है । यह पुर सुवर्ण का है, मृदु है और इसका तल चित्रित है। [१६१] यहाँ २५० योजन पार्श्ववाला वैजयन्त है। बाहर इसको चैत्ररय, पारुष्य, मित्र और नन्दन विभूषित करते हैं। इन उद्यानों से २० योजन' के अन्तर पर चारों ओर सुभूमि हैं।-- पूर्वोत्तर में पारिजात और दक्षिण-पश्चिम में सुधर्मा है।' १. आयस्त्रिंश' मेरु के शिखर पर निवास करते हैं। इस शिखर के पार्थ ८०००० योजन हैं। अन्य आचार्यों के अनुसार प्रत्येक पार्श्व २०००० योजन है, समन्सतः परिक्षेप ८०००० २. विदिशाओं में ५०० योजन के उच्छ्रित और विशाल कूट है जहाँ वज्रपाणि नाम के यक्ष निवास करते हैं ३. मेरुतट के मध्य में देवराज शक्र की सुदर्शन नामक राजधानी है। इसके पार्श्व २५०० मेरमूलित्रास्त्रिशाः चाशीति सहस्रविक् । विदिक्षु कूटाश्चत्वार उषिता वज्रपाणिभिः॥६५॥ मध्मे साद्विसाहस्रपामध्यप्रयोजनम् । पुरं सुदर्शनं नाम हेमं चित्रतलं मृदु ॥६६॥ सार्धतिशतपाश्र्वोऽत्र वैजयन्तो बहिः पुनः । तच्चत्ररथपारुष्यमिधनन्दनभूषितम् ॥६७॥ विशन्त्यन्तरितान्येषां सुभूमीनि चतुर्दिशम् । पूर्वोत्तरे पारिजातः सुधर्मा दक्षिणावरे ॥८॥ सामान्यतः दक्षिणापर। शनादि देव जो नास्त्रिशों के पार्षद हैं।-विभाषा, १३३, १४ वसुबन्धु इसका अनुसरण चीनी नाम कोश के नामों से नहीं मिलते)। क्ष्यैवमुक्तम्। १ स २ ३