पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३९२

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} ३८४ अभिधर्मकोश मन्द मारुत से प्रतिबध्यमान हो तयापि यह एक अपूर्व सदृश गन्ध-सन्तान उत्पन्न करती है । सदा गन्ध मन्दतरतम होती जाती है और सर्वथा समुच्छिन्न होती है। इस कारण तया विप्रकृष्ट अध्व में नहीं फैलती। क्या गन्ध-सन्तान का आश्रय गन्धात्मक महाभूतमात्र हैं ? अथवा क्या वायु अधिवासित होती है ? [यथा जब तिल पुष्प-गन्ध से अधिवासित होता है तव गन्धान्तर की उत्पत्ति होती है जो पुष्प-गन्ध से अन्य है । -आचार्यों का मत इस पर स्थिर नहीं है। किन्तु भगवत् ने कहा है : "पुष्प-गन्ध प्रतिवात नहीं जाता। न चन्दन, न अगर, न मल्लिका श्रीगन्ध प्रतिवात जाता है। किन्तु सत्पुरुषों का गन्ध प्रतिवात जाता है । सत्पुरुष सब दिशाओं में जाता है।" गन्ध प्रतिवात जाती है । इस वाद का श्लोक से विरोध है। इसका परिहार कैसे किया जाय? इस श्लोक की अभिसन्धि सत्व लोक के गन्धों से है। यह स्पष्ट है कि वहाँ की गन्ध प्रतिवात नहीं जाती। महीशासकों का पाठ इस प्रकार हैं : "[पारिजातक पुष्प की] गन्ध अनुवात १०० योजन जाती है। जब वायु नहीं होती तब ५० योजन जाती है।" 5. पूर्वोत्तर में सुधर्मा नाम की देवसभा है जहाँ देव सत्वों के कृत्य-अकृत्य का संप्रधारण करते हैं। त्रयस्त्रिश देवों के भाजन का यह संनिवेश है। तत ऊर्ध्वं विमानेषु वेवाः कामभुजस्तु षट् । द्वन्द्वालिगनपाण्याप्तिहसितेक्षणमैथुनाः ।।६९।। ६६ ए-बी. इससे ऊर्ध्व देव विमानों में रहते हैं।' त्रयस्त्रिंश देवों से ऊर्ध्व जो देव हैं वह विमानों में निवास करते हैं। यह देव याम, तुपित, निर्माणरति, परनिर्मितवशवतिन् तथा रूपावचर देव अर्थात् ब्रह्मकायिकों से आरम्भ कर १६ प्रकार के देव हैं। कुल २२ प्रकार के देव हैं जो भाजनलोक में हैं और वहाँ नियत स्थानों में + ४ ५ न तथा विप्रकृष्टम् अध्वानं प्रसर्पति । संयुक्त, २८,३१, एकोत्तर, १३,१७, उदानवर्ग, ६.१४, धम्मपद, ५४, अंगुत्तर १.२२६१ जातक, ३. २९१ न पुष्पगन्धः प्रतिवातमेति। हृदोन तो = पठन्ति- शुआन-चाङ 'महीशासकों के सूत्र में पठित है. सुधर्मा पर दिव्य, २२०, अंगुत्तर, १.२२६, विभाषा, १३३, १५ : पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी और पूर्णिमा-अमावस्या को देवसभा होती है। वह दव और मनुष्यों का संप्रधारण करते हैं। असुरों पर शासन करते हैं, इत्यादि. .। इसी प्रकार नजिओ, ५५०- श वान फाइव हंड्रेड एकाउंट्स १. २६- जे. पिजिलुस्को. जे ए एस- २. १५७-वीध २. २०७, महावस्तु, ३.१९८ पर। तत ऊर्ध्वं विमातेषु देवाः-- विमान या तो बहुत बड़े चबूतरे हैं या व्यक्तियों के रहने के प्रासाद हैं। पृ० १५७. १६१, ३ १०१ सी. १