पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३९७

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तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश ३८९

i वा परिणाम यथाक्रम चूड़िक, मध्यम और महासाहस्र के परिमाण के बराबर है । दूसरों के अनुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय व्यान का परिमाण यथाक्रम चूड़िक, मध्यम और महासाहस्र के परिमाण के वरावर है। चतुर्थ ध्यान अपरिमाण है।' [.७०] चूड़िक, साहस्र, द्विसाहस्र, त्रिसाहस्र क्या है ? चतुपिकचन्द्रार्कमेल्कामदिवौकसाम् । ब्रह्मलोकसहस्त्रं च साहस्रश्चूडिको मतः ॥७३॥ तत्सहनं द्विसाहस्रो लोकधातुस्तु मध्यमः । तत्सहस्रं त्रिसाहनः समसंवर्तसम्भवः ॥७४।। ७३-७४. एक सहस्र चतुर्तीपक, चन्द्र, सूर्य, मेरु, कामदेवों के स्थान और ब्रह्मलोक चूड़िकसाहस्र कहलाता है । १००० चूडिकसाहस का द्विसाहस्र होता है । यह मध्यम लोकधातु है। एक साहन द्विसाहन का त्रिसाहस्र होता है। लोकधातु का संवर्त और संभव समकाल का होता है। . . एक चूड़िकसाहस्र लोकधातु में १००० जम्बुद्वीप, पूर्वविदेह, अवरगोदानीय, उत्तरकुर, चन्द्र, सूर्य, चातुर्महाराजकायिक और अन्य कामदेवों के स्थान और ब्रह्मलोक होते हैं। इस प्रकार के १००० लोकवातु का द्विसाहन होता है। यह मध्यम लोकधातु है।--इस प्रकार के १००० लोकधातु का त्रिसाहस्रमहासाहस्र लोकवातु होता है। संवर्त और विवर्त का काल समान है। कारिका में 'संभव' शब्द विवर्त के अर्थ में प्रयुक्त 1 जैसे भाजनों के परिमाण भिन्न हैं उसी प्रकार वहाँ के निवासियों के परिमाण भिन्न हैं। ४ ? १ चतुर्थ त्वपरिमाणमिति तारकाक्द् अतलप्रतियुद्धविमानत्वाद् अपरिग्राणत्वसम्भव इत्यभि- प्रायः-३. १०१ सी. देखिये। चतुर्दीपकचन्द्रार्कमेरुकामदिवौकसाम् । ब्रह्मलोकसहस्रं च साहस्रश्चूडिको मतः॥ तत्सहलं द्विसाहलो लोकधातुस्तु मध्यमः। तत्सहस्र त्रिसाहस्रः समसंवर्तसम्भयः॥ अंगुत्तर, १.२२७, चुल्लनिद्देस, २३५, २ बी. (सहस्सी चूलनिका लोकधातु); दोध, १८, का उल्लेख बील, केटीना १०२ में है। बील कई सूत्र उद्धृत करते हैं- महाव्युत्पत्ति, १५३ और १५,१५-ऐसा प्रतीत होता है कि महाव्युत्पत्ति में साहस्रचूड़िक एक शब्द है। वास्तव में एकलोक को 'साहस्र' कहते हैं क्योंकि इसमें १००० चतुर्दीप (चातु- पिक लोकधातु) हैं और इसे चूडिक कहते हैं क्योंकि यह महालाहल का चूड़ा(चूडाभूतत्त्रात्) है।-(निस्सन्देह यह क्षुल्ल, क्षुद्र - चुल्ल, चूल है) ३. ९३ ए-बी. में इसका व्याख्यान करेंगे (व्याख्या)-यह अर्थ अधिक उपयुक्त होगा"एक समूह के लोकधातुओं का) विवत और संत एक ही काल में होता है। "विवर्त' का अर्थ है 'विविधवर्तन' अथवा 'विविधा वर्तन्तेऽस्मिन्निति'-संवर्त - संवर्तन अथवा 'संवर्तन्तेऽस्मिन्निति : यह वह काल हैं जिसमें सत्व ऊर्ध्वव्यानों में एक साथ जाते हैं (संव- तन्ते - संगच्छन्ति), पृ. १८१ .िप्पणी ३ देखिये । २