पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४०

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२ 7 प्रथम फोशस्थानः धातुनिर्देश २५ १४ सी. वेदना दुःखादि अनुभव है। वेदनास्कन्ध त्रिविध अनुभव या अनुभूति (अनुभव; अनुभूति, उपभोग घ्या ३६. ३३]) है : सुख, दुःख, अदुःखासुख । वेदना के ६ प्रकार हैं : जो चक्षुरादि ५ रूपी इन्द्रियों के स्वविषय के साथ संस्पर्श होने से उत्पन्न होते हैं; जो मन-इन्द्रिय के साथ संस्पर्श होने से उत्पन्न होता है (२.७ आदि)। [२८] १४ सी-डी. संज्ञा निमित्त का उद्ग्रहण है।' नीलत्व, पीतत्व, दीर्घत्व, ह्रस्वत्व, पुरुषत्व, स्त्रीत्व, शातत्व, अशातत्व, मनोज्ञ, अमनोज आदि विविध स्वभावों का उद्ग्रहण, परिच्छेद संज्ञास्कन्ध है (१. १६ ए देखिए)। वेदना के समान संज्ञाकाय के भी इन्द्रिय के अनुसार ६ प्रकार हैं। चतुर्योऽन्ये तु संस्कारस्कन्ध एते पुनस्त्रयः। धर्मायतनधात्वाख्याः सहाविज्ञप्त्यसंस्कृतैः ॥१५॥ १५ ए-धी. अन्य चार स्कन्धों से भिन्न संस्कार संस्कारस्कन्ध है ।२ सर्व संस्कृत (१.७ए) संस्कार हैं किन्तु संस्कारस्कन्ध उन्हीं संस्कृतों के लिए प्रयुक्त होता है जो न पूक्ति रूपस्कन्ध, वेदनास्कन्ध, संज्ञास्कन्ध में संगृहीत हैं और जो न वक्ष्यमाण (१. १६) विज्ञानस्कन्ध में संगृहीत हैं। .

1 . i २ वेदनानुभवः।-२.७, ८, २४, ३. ३२; संयुत्त, ३. ९६; धम्मसंगणि, ३; थियोरी आफ ट्वेल्व काजेज, पृ २३ १ संज्ञा निमित्तोद्ग्रहणात्मिका ॥ [व्याख्या ३७.५] मज्झिम, १.२९३; सिद्धि, १४८; .१० निमित्त, ८. १८५. 'निमित्त' से वस्तु की विविध अवस्थाएँ, 'वस्तुनोऽवस्थाविशेषः' [व्याख्या ३७.५] सम- झना चाहिए। 'उग्रहण' का अर्थ 'परिच्छेद' है। विज्ञानकाय २६ ए १६ जो न्यायदिन्दुपूर्वपक्षसंक्षेप (तिब्बती सूत्र १११, फ़ोलिओ १०८ वी) और मध्यमकवृत्ति (पृ० ७४) में उद्धृत है कहता है कि चक्षुर्विज्ञान नील को जानता है (नीलं जानाति) किन्तु यह नहीं जानता कि 'यह नील है (नो तु नीलमिति)। १.३३ ए-बी. पर टिप्पणी देखिए-संज्ञा से चक्षुः संस्पर्शज उपलब्धि और चक्षुः संस्पर्शज उपलब्धि के बाह्यहेतु का नामकरण होता है। आक्षेप--विज्ञान और संज्ञा का सदा संप्रयोग होता है (२.२४) । इसलिए चक्षुर्विज्ञान आलम्बन के निमित्तों का उद्ग्रहण करेगा। उत्तर--पंच विज्ञानकाय से संप्रयुक्त संज्ञा अपटुः होती है। केवल मनोविज्ञान-संप्रयोगिणी संज्ञा पटु होती है। यही सविकल्पक है (१.३२-३३)। [व्याख्या ३७.९] संयुत्त, ३.८६ से तुलना फीजिए; अत्यसालिनी, २९१, मिलिन्द ६१. इस पंक्ति का उद्धार कठिन है। [संस्कारस्कन्ध चतुर्योऽन्ये संस्काराः] [व्याख्या ३७.१३] संस्कारों पर थियोरी आफ ट्वेल्व काजेज, पृ. ९-१२ देखिए। २