पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४०२

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३९४ अभिधर्मकोश प्रेतों के अहोरात्र का प्रमाण मनुष्यों का एक मास है। वह इस प्रमाण के अहोरात्रों के ५०० वर्ष तक जीवित रहते हैं। वाहाद् वर्षशतेनैकतिलोद्धारक्षयायुषः । अबुदा विशतिगुणप्रतिवृद्धायुषः परे॥८४॥ ८४. अर्बुदों की आयु का काल उतना है जितने काल में एक दिन वाह से वर्ष शत में एक [१७६] तिल लेने से उसका क्षय होता है। दूसरों के लिए प्रतिवृद्धिं २० गुनी होती है।' भगवत् ने शीत नरकों के आयुः प्रमाण को केवल उपमाओं से निर्दिष्ट किया है : 'हे भिक्षुओं ! यदि ८० खारि' का एक मागधक तिलवाह चूडिकाबद्ध हो' और यदि कोई इसमें से एक तिल १०० वर्ष में ले तो यह वाह रिक्त हो जायगा किन्तु अर्बुद में उपपन्न सत्वों के आयु का क्षय न होगा। मेरा ऐसा कथन है । और हे भिक्षुओं! ऐसे २० अर्बुद हैं। हे भिक्षुओ! इनका एक निरर्बुद होता है ...."। (पृ. १४५, एन. २ देखिए ) क्या सब सत्व जिनका आयुः प्रमाण बताया गया है इस प्रमाण तक जीवित रहते हैं ? कुरुवर्योऽन्तरा मृत्युः परमाण्वक्षरक्षणाः ।. रूपनामाध्वपर्यन्ताः परमाणुरणुस्तथा ॥८॥ लोहाप्छशाविगोच्छिद्र रजोलिक्षा तदुद्भवाः । यवस्तथांगुलीपर्व ज्ञेयं सप्तगुणोत्तरम् ॥८६॥ चतुर्विशतिरंगुल्यो हस्तो हस्तचतुष्टयम् । धनुः पञ्चशतान्येषां कोशोऽरण्यं च तन्मतम् ॥८७॥ तऽष्टौ योजनमित्याहुविंशत्क्षणशतं पुनः । तत्क्षणस्ते पुनः षष्टिलवस्त्रिशद्गुणोत्तराः ॥८॥ तेजस्विन है) यह सूची दी है, बुद्धिस्ट कास्मालोजी, पृ० पी. २९८--जिविसेर कहते हैं कि यह सूची दीर्घ में (१६ भाग जो गरुड़ से दूर भागते हैं) सद्धर्मपुण्डरीक में (आठः नन्द, उपनन्द, मनस्विन्. .) नहीं है। बोल ४१९ में उल्लिखित सूत्र : महाव्युत्पत्ति, १६७, १४, ५१, ६६, ५८, ४४- मुचिलिन्द, महावग्ग, १.३–पालि में कोई उल्लेख उन नागों का नहीं है जो शेष के तुल्य पृथ्वी का वहन करते हैं। ऊपर पृ. ३१. चाहाद् वर्षशतेनफतिलोद्धरक्षयायुषः। अर्बुदा विंशतिगुण प्रतिवृद्धयायुषः परे।। सुत्तनिपात, पृ. १२६, संयुत्त, १. १५२, अंगुत्तर, ५. १७३, सेय्यथापि भिक्खु वीसति- खारिको कोसलको तिलवाहो। ततो पुरिसो क्स्ससतस्स न वस्ससतस्स अच्छयेन. सुत्तनिपात, ६७७ में है कि 'पंडितों ने पदुम नरक के लिये तिलवाह की गणना की है और यह संख्या ५१२ ००००००००० है ( फौजबोल)।. २ लोचव के अनुसार; परमार्थ और शुआन-चाङ में पालि के तुल्य 'विंशति- खारिक' है। तिब्बती नि = वाह; खल् = खारि; वाह के प्रमाण पर, बारनेट, ऐंटीविक्टोज, २०८, गणितसारसंग्रह (मद्रास १९१२), ५. दूसरी ओर तिलवाह = तिलशकट (रोज-डेविडस) १ चोटोतक भरा- चूड़िकाबद्ध (० अवबल, महाव्युत्पत्ति, २४४, ९२) !