पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४०३

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तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश . श्रयो मुहूर्ताहोरात्रमासा द्वादशमासकः । संवत्सरः सोनरात्रः कल्पो बहुविधः स्मृतः ॥८९॥ संवर्तकल्पो नरकासंभवाद् भाजनक्षयः । विवर्तकल्पः प्राग्वायो विन्नारकसम्भवः ॥९॥ अन्तःकल्पोऽमिताद्यावद्दशवर्शायुषस्ततः । उत्कर्षा अपकर्षाश्च कल्पा अष्टादशापरे ॥९१॥ उत्कर्ष एकस्तशीति सहस्राद् यावदायुषः । इतिलोको विवृत्तोऽयं कल्पांस्तिष्ठति विंशतिम् ॥९२॥ विवर्ततेऽथ संवर्त आस्ते संवर्तते समम् । तेऽह्यशीतिमहाकल्पस्तदसंख्यत्रयोद्भवम् ॥९३॥ बुद्धत्वमपकर्षे तु शताद् यावत्तद्भवः । द्वयोः प्रत्येकबुद्धानां खड्गः कल्पशतान्वयः ॥१४॥ ८५ ए. कुरुओं को वर्जित कर अन्तरामृत्यु होती है।' उत्तर कुरु के मनुष्यों की आयु नियत है। वह १००० वर्ष अवश्य जीवित रहते हैं। उनका आयुः प्रमाण पूरा होता है। अन्यत्र सब जगह अन्तरामृत्यु होती है। कुछ पुद्गल अन्तरामृत्यु से नित्य सुरक्षित होते हैं यथा वह बोधिसत्व जो तुषित लोक में है और एकजातिबद्ध है, चरमभविक [जिस अर्हत्व के लाभ के पूर्व बीच में कालक्रिया [१७७] न होगी]', जिसके सम्बन्ध में भगवत् ने व्याकरण किया है, जिन दूत, श्रद्धानुसारी और धर्मानुसारी (६.२६ एबी) [जो श्रद्धादियुक्त और दृष्टिप्राप्त हुए विना कालक्रिया नहीं करेंगे], वह स्त्री जिसके गर्भ में वोधिसत्व या चक्रवर्ती है, इत्यादि ।' हमने स्थान और शरीर के प्रमाण का निर्देश योजनों में और आयु को प्रमाण का निर्देश वर्षों में किया है किन्तु हमने योजन और वर्ष का निर्देश नहीं किया है। इनका निर्देश केवल नाम से हो सकता है। अतः नामादि का पर्यन्त बताना चाहिए । ८५ वी-सी. परमाणु अक्षर और क्षण यथाक्रम रूप नाम और अध्व के पर्यन्त है।' ४ कुरुपयॊऽन्तरामृत्युः अन्तरामृत्यु - अन्तरेण कालकिया = अकालमरण--२. ४५ अनुवाद. पृ. २१८ देखिये- वसुमित्र का प्रन्य निकायों पर। उत्तरकुरु के मनुष्यों को अकालमृत्यु नहीं होती क्योंकि वह नहीं कहते कि "यह आत्मीय है" (लोकप्रज्ञाप्ति)। 'दिव्य, १७४, १: अस्थानमनवकाशो यच्चरमविकः सत्वोऽसंप्राप्त विशेषाधिगमे सोऽन्त- रा फालं कुर्यात् । जिनोद्दिष्ट, जिनदूत, २. अनुवाद . पृ. २२० तया टिप्पणी देखिये। 'तिरोध-असंज्ञि, समापत्ति और मंत्री आदि समापत्ति में समापन्न को तब तक कालमिया नहीं होती जवतक कि वह समाधि से व्युत्यान नहीं करते। परमाण्वक्षरक्षणाः। रूपनामावपर्यन्ताः परमाणु 'अणु' से भिन्न है। २. २२ देखिये ।-'नामन् पर २.४७-काल, अध्यन् पर ४. २७ ए,