पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४०६

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$90 अभिधर्मकोश [१०] मुहूर्त में तीस लव होते हैं। तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है । रात्रि दिन से कभी बड़ी, कभी छोटी, कभी समान होती है । हेमन्त', ग्रीष्म, वर्षा के चार चार महीने होते हैं : इस प्रकार १२ मास होते हैं जिनका (ऊनरात्रों के साथ) एक संवत्सर होता है। ऊनरात्र वह ६ दिन हैं जिनका [चान्द्रमास की गणना के लिये) संवत्सर में निपात होता है। इस पर एक श्लोक है : "हेमन्त, ग्रीष्म और वर्षा की ऋतु के जब १॥ मास व्यतीत होते हैं तब शेप अर्धमास में से विद्वान् एक ऊन रात्र का निपात करते हैं। हमने संवत्सर का निर्देश किया है। अव कल्प का व्याख्यान करना है। [१८१] ८६ डी-६३ सी . कल्प बहुत प्रकार का है : ए. संवर्तकल्प : जिस समय नारकों की उत्पत्ति बन्द हो जाती है भाजन का क्षय होता है; बी . विवर्तकल्प : प्राग्वायु से लेकर उस क्षण तक सब नारकरें की उत्पत्ति होती है ;सी : अन्तःकल्प: पहले वह कल्प जिसमें आयु अमित से क्षीण होकर १० वर्ष की होती है, अन्य १८ उत्कर्ष और अपकर्ष के कल्प, एक उत्कर्ष का कल्प जिसमें १ प्रवचन २ दिच्य में तत्क्षण का यह लक्षण दिया है : तद्यथा स्त्रिया नाति दीर्घ नाति हस्यकतिन्याः सूत्रो. धाम एवंदीर्घस्तत्क्षणः; किओफुग प्रज्ञाप्ति को उद्धृत करते हैं: “जब मध्य आयु एक सूत कातती है तो जितने समय में एक, म बड़ा, न छोटा, धागा निकलता है वह तत्क्षण का प्रमाण है। (लुइ वान हेइ की टिप्पणी के अनुसार) में तीन ऋतु हैं, ६ नहीं हैं जैसा लोक में प्रसिद्ध है। शिशिर शीत है। इसलिये उसे हेमन्त कहते हैं। वसन्त उष्ण है। इसलिये उसे ग्रीष्म कहते हैं। शरद् में भी वृष्टि होती है। इसलिये उसे वर्षा कहते हैं' (व्याख्या)।--(काठियावाड़ में तीन ऋतु हैं, अलबरूनी १. ३५७)--सब बौद्धों के लिये हेमन्त पहलो ऋतु है (व्याख्या) (बुर्नफ इंट्रोडक्शन ५६९)--बौद्ध ऋतुओं के लिये इत्सिग तकाकुसु १०१, २१९, २२०, सि-थु-कि अध्याय २, वाटर्स, १ १४४-धीबो आस्ट्रानोमी इस श्लोक के अंश व्याख्या में मिले हैं: हेमन्तग्नोमवर्षाणामध्यर्धमासि निर्गते। शेषेर्धमासि विभिनरात्रो निपात्यते॥ए 'विद्वान्' बौद्ध हैं जो प्रत्येक ऋतु के चौथे और आठवें पक्ष में एकदिन का त्याग करते हैं। इसे अनरात्र या क्षपाह कहते हैं। ( थीयो, आस्ट्रानोमी १८९९, २६. बार्नेट, ऐंटीविवटिज १९५)। इस प्रकार भिक्षु चातुर्दशिक पोषध करते हैं; पूर्णिमा अमावास्या को नहीं : चालुर्दशिकोऽत्र भिक्षुभिः पोषधः क्रियते। लौकिक गणना से एक मास ३० अहोरात्र का होता है। चान्द्रमास २९ अहोरात्र, १२ घंटा, ४४ मिनट का होता है। पोषध चान्द्रगणना के अनुसार हाता है। अतः प्रति दो मास में एक ऊनरान का निपात होता है। अतः ८ पक्ष की प्रत्येक चान्द्र ऋतु में १५+ १५+ १५ १५+१+१+१+१४ दिन होंगे। चान्द्र संवत्सर में ६ अहोरात्र अधिक होने से लौकिक संवत्सर होता है। प्रति दो वर्ष और सात महीने में एक अधिमास अधिक होता है जिसमें सूर्य (३६६ दिन) के बरावर हो जावे (अलवरूनी, २ २१). मातंग सूत्र देखना चाहिये, जिओ ६५४, दिव्य, ६५७ में इसका विवरण है, शार्दूलकर्ण का भाग (मासपरीक्षा) जो कावेल-नील ने छोड़ दिया है ए. निपात्यतेत्यज्यते