पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४०४ अभिधर्मकोश [१८८] कहा जाता है कि बुद्धत्व की प्राप्ति ३ असंख्येय कल्प की चर्या से होती है। चार प्रकार के कल्पों में से कौन कल्प अभिप्रेत है ? ६३ डी-६४ ए. बुद्धत्व का उद्भव इन (कल्पों) के असंख्य त्रय से', इन व्याख्यात महाकल्पों से, होता है। [१८६] किन्तु यह आक्षेप होगा कि असंख्य (= असंख्येय) उसे कहते हैं जिसकी संख्या न हो सके। फिर तीन असंख्येय' की बात कैसे हो सकती है? ऐसा न समझना चाहिये क्योंकि एक मुक्तक' सूत्र में यह कहा है कि संख्या के ६० स्थान हैं (ग्नस् ग्झन् = स्थानान्तर)।—यह ६० स्थान क्या है ? । २ शाक्य ५ तवसंख्यत्रयोद्भवम् । वुद्धत्वम् १ असंख्येय (१० का ५९ वा धन) महाकल्पों का काल असंख्येय कल्प कहलाता है। [असंख्य = असंख्येय--संख्यानेनासंख्येया असंख्या इति] शुआन-चाङ "तीन असंख्येय कल्प की गणना के लिये चार प्रकार के उक्त कल्पों में से किसको गुणा करना चाहिये ?-महाकल्पों को १०,१००,१००० और इसी प्रकार गुणा करते जाना चाहिये यावत् गुणा का फल 'तीन असंख्येयकल्प' हो। जो 'असंख्येय कहलाता है वह तीन कैसे होता है ? --'असंख्येय' शब्द का अर्थ यह नहीं है कि इसका संख्यान नहीं हो सकता। एक विमुक्तक सूत्र कहता है कि (असंख्येय ६० संख्याओं में से एक है। यह ६० संख्या क्या है ?-यया इस सूत्र में कहा है : “एक और दो नहीं.. मुनि को चर्या का प्रथम असंख्येय पूर्व शाक्यमुनि (महावस्तु १.१) के अधीन आरम्भ होता है और रत्नशिखिन् के अधीन समाप्त होता है। इस असंख्येय में ७५००० बुद्धों का प्रादुर्भाव होता है (कोश, ४. ११० न्यूमरिकल डिक्शनरी इन रेलिजस एमिनेट्स में ७५००० के स्थान में ५००० पाठ है। द्वितीय असंख्पेय की निष्ठा दीपंकर से होती है।--बुद्ध : ७६०००. तृतीय असंख्येय की निष्ठा विपश्यिन् से होती है। बुद्ध : ७७००० इसके अनन्तर ९१ महाकल्प हैं (१०० के स्थान में जैसा कोश,४. ११२ ए में व्याख्यात है) सात 'ऐतिहासिक' बुद्धों में पहला विपश्थिन है (सप्तबुद्धस्तोत्र में इनका स्तवन है)। तदनन्तर शिखिन् विश्वभुज्, ऋकुत्सन्द, फोनाकमुनि, काश्यप और शाक्यमुनि हैं (हवाले, ३ पालि ग्रन्थों में (चरियापिटक, १. १, १.) बोधिसत्व को चर्या चार 'असंख्येय' और शत- सहस्त्र 'कप्प' की है। पीछे के ग्रन्थों में यथा सारसंग्रह में बोधिसत्व की चर्या ४, ८ या १६ असंख्येय और शतसहस्र 'कप्प' की है। मुक्तकसूत्र अर्थात एक सूत्र जो आगम के अन्तर्गत नहीं है: न चतुरागमान्तर्गतमित्यर्थः।- अन्यत्र मुक्तकसूत्र अप्रामाणिक सूत्र को कहते हैं। परमार्थ का अनुवादः उच्छेष; शुआन-चाङ किअइ-थुओ% (वि) मुक्तक 'हमारी सूची महाव्युत्पत्ति, २४९ को है ( जो वेगीहारा के अनुसार कोश का उद्धरण है)- महाव्युत्पत्ति को पोथियों में १४ और १५ वें स्थान प्रसुत, महाप्रसुत हैं किन्तु चीनी संस्करणों में प्रयुत, महाप्रयुत हैं। तिब्बती में प्रकीर्ण या प्रसृत है। ३६ वें, ३७ वें स्थान समाप्तः, महासमाप्तः के लिये वंगीहारा समाप्तम् महासमाप्तम् प्रस्तावित करते हैं। हमारी सूची में, जैसा वसुबन्धु ने नीचे पृ. १९० में कहा है, ५२ आख्या हैं : मध्य की आठ संख्या विस्मृत हो गई हैं: अष्टकं मध्याद् विस्मृतम् . .....पू. १९०, f० १ देखिये। महासंख्याओं पर अलफाबेटम टिवटनम शोंफर, मेला अजिमातिक ६२९, रेनूसा, मेलाँग पं स्थूम, ६७, बील कैटीना १२२, अन्य अन्य और गणनाओं के लिये हेसिग्स, एजेज ऑव द वल्डं १८८ बो देखिये। १ २