पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४१५

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४०७ तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश किस काल म बुद्धों का प्रादुर्भाव होता है ? १४ए-बी. अपकर्ष-काल में जब तक कि आयु वर्षशत-पर्यन्त रहती है। वह प्रादुर्भूत होते हैं।" [१९३] वुद्धों का उत्पाद आयु के अपकर्ष-काल में होता है जब आयुः प्रमाण का ह्रास ८०००० से १०० वर्ष तक होता है। वह उत्कर्प-काल में क्यों नहीं प्रादुर्भूत होते ? ...क्योंकि उस समय मनुष्यों का संसार से उद्वेग, त्रास और जुगुप्सा दुष्कर है । उनका उत्पाद उस समय क्यों नहीं होता जब आयु का १०० वर्ष से १० वर्ष तक उत्तरोत्तर होनः प्रार्थयते स्वसन्ततिगतं तस्तैरुपायैः सुखम्] मथ्यो दुःखनिवृत्तिमेव न सुखं दुःखास्पदं तद्यतः। श्रेष्ठः प्रार्थयते स्वसन्ततिगतैर्दुःखैः परेषां सुखम् दुःखात्यन्तनिवृत्ति.. तदुखैः स दुःखी (यतः)॥ . यह भी अर्य हो सकता है। दूसरे के लिये श्रेष्ठ कामना, आभ्युदयिक और नैःश्रेयसिक ( 3 निर्वाण, दुःखनिरोध) और अपने लिये दुःख निरोध अर्थात् बुद्धत्व चाहता है क्योंकि यह परहित क्रिया का उपाय है। किओकुग के अनुसार प्रज्ञापारमिताशास्त्र, २९, १८ संयुक्त के उन श्लोकों को उद्धृत करता है जिनमें यही बाद व्याख्यात है। वीध, ३. २३३, अंगुत्तर, २. ९५ के चार प्रकार से तुलना कीजिये। अपकर्षे तु शताद् यावत् तदुद्भवः। पालिग्रन्यों का भिन्नवाद है, यथा सार-संग्रह। अन्त्यबुद्धों के प्रादुर्भाव के काल पर एकमत्य नहीं है। विभाषा, १३५, १८ दोर्घागस आदि। (रेमूसा, मेलॉग पोस्यूम की टिप्पणियाँ) वीर्घ के अनुसार हमारै महाकल्प के नवें अन्तरकल्प में चार बुद्ध हुये : ऋकुच्छद (वह काल जब आयु ४०००० वर्ष की थी), कनकमुनि (३०००० की आयु),काश्यप (२०००० को आयु), शाक्यमुनि (१०० वर्ष की आयु) (दोघ, २. ३, अशोकावदान, अवदानशतक आदि में यही संख्या है); अन्यत्र ६००००, ४००००, २०००० और १०० । दूसरे कहते हैं: पहले पाँच अन्तरकल्पों में बुद्ध नहीं होते; कुकुच्छन्द छठे में, कनकमुनि, सातवें में काश्यप आठवें में, शाक्यमुनि नवें मैं, मैत्रेय दसवें में। वर्तमान भद्रकल्प के अन्य बुद्ध अन्य अन्तरकल्पों में होते हैं। महायान के अनुसार हम अपने महाकल्प के प्रथम अन्तरकल्प में हैं : अपकर्ष-काल में चार बुद्ध; उत्कर्ष काल में एक बुद्ध (मैत्रेय)।--वास्तव में नंजिओ २०४ को टीका में (मै य का अवं उत्पाद) : "शाक्य मुनि का अपकर्ष-काल में और भैय का उत्कर्ष-काल में क्योंप्रादुर्भाव होता है ? उनके प्रणिधान के कारण......" प्रज्ञापारमिताशास्, ४, १९, ३२--कहते हैं कि जब मनुष्य की आयु ८४०००, ७००००, ६००००, ५००००, ४००००, ३००००, २००००, १०० वर्ष की होती है, तब वुद्धों का उत्पाद होता है.....। किन्तु बुद्धों की करुणा शाश्वत है। उनका धर्म अच्छी ओषधि के तुल्य आकालिक है। देवों की आयु १०००+१०००० वर्ष से अधिक होती है और बहू महासुख का भोग करते हैं (किन्तु वह विनेय हैं)। अतः मनुष्य तो और भी विनेय है। इसलिये जब आयु ८०००० वर्ष से अधिक को हो तव बुद्धों का प्रादुर्भाव होना चाहिये।