पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४२

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प्रथम कोशस्वानः पातुनिर्देश विज्ञान प्रतिविज्ञप्तिर्मन आयतनं च तत्। धातवः सप्त च मताः षड् विज्ञानान्यथो मनः॥१६॥ १६ ए. विज्ञान प्रत्येक विषय की विज्ञप्ति है। विज्ञानस्कन्ध प्रत्येक विषय की विज्ञप्ति है । यह विषय विषय की (विपयं विषयं प्रति)३ उपलब्धि है (व्या ३८. २४) । विज्ञानस्कन्ध ६ विज्ञानकाय है- [३१] चक्षुर्विज्ञान, श्रोत्र', प्राण, जिह्वा, काय, मनो। आयतन-देशना में (१.२० ए), १६ वी. यह मन आयतन है।' वातु-(१.२० ए) देशना में १६ सी-डी. यह ७ धातु हैं अर्थात् ६ विज्ञान और मनस् । अर्थात् चक्षुर्विज्ञानधातु, श्रोत्र, धाण', जिह्वा, काय, मनोविज्ञानधातु, मनोधातु । हमने कहा है कि ५ स्कन्ध, १२ आयतन, १८ धातु हैं। १. रूपस्कन्ध १० आयतन, १० धातु और अविज्ञप्ति है। २. वेदना, संज्ञा और संस्कारस्कन्ध तथा अविज्ञप्ति और संस्कृत धर्मायतन, धर्मधातु हैं। 3 ४ . २ विज्ञान प्रतिविज्ञप्तिः (२.३४) । [व्याख्या ३८.२२] चित्त और चैत्त, २.१७७, अर्थात् संघभद्र के अनुसार : यद्यपि बहुरूपी आलम्बन वर्तमान हो तथापि चक्षुर्विज्ञान केवल रूप का ग्रहण करता है, शब्द का नहीं; यह नीलादि का ग्रहण करता है किन्तु यह निर्दिष्ट नहीं करता कि यह नीलादि है, यह सुखवेदनीय, दुःखवेदनीय है, पुरुष, स्त्री आदि है, यह मूल आदि ..... व्याख्या [३८.२४] 'उपलब्धि' का अर्थ 'वस्तुमात्रग्रहण' देती है और पुनः कहती है- वेदनादयस्तु चैतसिका विशेषग्रहणरूपाः। व्याख्या ३८.२५] (विन्लियोथिका बुद्धिका का यह पाठ अशुद्ध हैः चतसिकविशेष)--"विज्ञान या चित्त वस्तुमात्र का ग्रहण करता है। चैतसिक या चित्तसंप्रयुक्त धर्म (२.२४) अर्थात् वेदनादि (वेदना संज्ञा ...) विशेष अवस्या का ग्रहण करते हैं।" यथा कायविज्ञान कर्कशत्व, श्लक्ष्णत्व आदि (१.१० डी) का ग्रहण करता है : यह सुखा वेदना से संप्रयुक्त होता है जो कर्कश या श्लक्ष्ण के अवस्थाविशेष, सुखवेदनीयतां का प्रहण करती है। चक्षुर्विज्ञान वर्ण (नीलादि) और संस्थान का ग्रहण करता है। यह संज्ञा नामक चत्तविशेष से संप्रयुक्त होता है जो गृहीत वर्ण और संस्थान के निमित्तविशेष का ग्रहण करती है : “यह पुरुष है, यह स्त्री है, इत्यादि।" (१.१४ सी-डी). यह वाद नागार्जुन के निकाय को मान्य है। मध्यमकवृत्ति, पृ० ६५, चित्तमर्थमात्रनाहि चत्ता विशेषावस्थाग्राहिणः सुखादयः ; दिग्नाग के सिद्धान्त का भी यही मत है, न्यायविन्दु- टीका, पृ.१२, तिब्बती भाषान्तर, पृ.२५, कोश के जापानी संपादक कोको और विभाषा का उल्लेख करते हैं। इनमें इस प्रश्न पर ४ मत निर्दिष्ट हैं। २.३४ बी-डी देखिए। मन आयतनं च तत्। २ [सप्त धातवश्च मत] षड् विज्ञानान्यथो मनः॥ व्याख्या ३८.२७] 9