पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/५

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किया। राहुल सांकृत्यायन तिव्वत से मूल संस्कृत-ग्रन्थ का फोटो लाये थे। जायसवाल-अनुशीलन संस्था पटना की ओर से मूल ग्रन्थ के प्रकाशित करने की व्यवस्था की जा रही है। चीनी भाषा में इस ग्रन्थ के दो अनुवाद है--एक परमार्थ का, दूसरा शुआन-च्वाड का। परमार्थ का अनुवाद ५६३ ई० का है। इस ग्रन्थ में ६०० कारिकाएँ हैं और वसुबन्धु ने इसका स्वयं भाष्य लिखा है। इस ग्रन्थ का बौद्ध-जगत् पर बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा। सब निकायों में तथा सर्वत्र इसका आदर हुआ। इसने बहुत सीघ्र अन्य प्राचीन ग्रन्थों का स्थान ले लिया। यह बड़े महत्त्व का ग्रन्थ है। मेरा विचार है कि इसका अध्ययन किये बिना बौद्ध-दर्शन के ऋमिक विकास का अच्छा ज्ञान नहीं होता। वसुबन्धु के अनुसार अभिधर्मकोश में वैभाषिक सिद्धान्त का निरूपण काश्मीर-नय से किया गया है। कोश के प्रकाशित होने पर सर्वास्तिवाद के प्राचीन ग्रन्थों (अभिधर्म और विभाषा) का महत्त्व घट गया। कोश में वैभाषिक-सौत्रान्तिक का विवाद भी दिया गया है। अन्त में ग्रन्थ- कार अपना मत भी देते हैं। कोश में अन्य ग्रन्थों से उद्धरण दिये गये हैं। इस प्रकार प्राचीन साहित्य के अध्ययन के लिये भी कोश का बड़ा महत्त्व है। अभिधर्मकोस पर कई टीकायें लिखी गयी थीं, किन्तु केवल यशोभित्र की 'स्फुटार्था' व्याख्या पायी जाती है। इसका संपादन वोगिहारा ने जापान से किया है। कलकत्ते से देवनागरी अक्षरों में यह ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। दिनाग, स्थिरमति, गुणमति, आदि ने भी कोश पर टीकायें लिखी हैं-~-मर्मप्रदीप, तत्त्वार्य टीका, लक्षणानुसार आदि। चीनी भाषा में भी कोश पर कई टीकायें हैं। संघभद्र ने न्यायानुसार नाम का अभिधर्मशास्त्र वसुवन्धु के मत का खण्डन करने तथा यह बताने के लिये लिखा है कि कहाँ वसुबन्धु शास्त्र से व्यावृत्त करते हैं; न्यायानुसार अभिधर्म कोश की आलोचनात्मक टीका है। जहाँ-जहाँ वसुबन्धु का भाष्य वैभाषिक मत का विरोध करता है, वहाँ वहाँ न्यायानुसार उसका खण्डन करता है । वृद्धावस्था में वसुबन्धु ने असंग के प्रभाव से महायान धर्म स्वीकार किया और विंशतिका और त्रिशिका नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचे। ये विज्ञानवाद के ग्रन्थ हैं। विशतिका पर वसुबन्धु ने अपनी वृत्ति लिखी। विशिका पर १० टोकायें थीं। इनमें से केवल स्थिरमति की टीका उप- लच्च है। शुभान-वाड ने त्रिशिका पर विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि नामक ग्रन्थ चीनी भाषा में लिखा। १. १९४९ में यह ग्रन्थ प्रकाशित हो गया। श्री नरेन्द्रनाथ लाहा द्वारा सम्पादित यशो- मित्र कृत अभिधर्म कोश व्याख्यर, कोशस्यान प्रथम, द्वितीय, तृतीय; कलकत्ता ओरियंटल सिरीज, संख्या ३१ । इसका चौथा कोष-स्थान भी इस वर्ष छप गया है। २. शुभान-ध्याड का जोवनी-लेखक हुई-लि सचित करता है कि काश्मीरी संधभद्र ने २५ सहन श्लोकों में शफारिकाशास्त्र लिखा था। वह न्धु से मिलना चाहता था, पर पहले हो गत हो गया। वसुबन्धु को जब संघभद्र के ग्रन्ट ता चला तो उन्होंने उसकी बहुत प्रशंसा की और उसे अधिकांश में अपने मत के अनुकू.. जानकर असे न्यायानुसारशास्त्र नाम दिया।