पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/५५

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४० अभिधर्मकोश जो दार्शनिक यह कहते हैं कि "बुद्ध-वचन वाक्-स्वभाव है" उनके मत में यह स्कन्ध रूप- स्कन्ध में संगृहीत होते हैं । जो बुद्ध-वचन को नाम-स्वभाव मानते हैं उनके लिए यह स्कन्ध संस्कार-स्कन्ध में संगृहीत होते हैं (२. ३६, ४७ ए-वी)। शास्त्रप्रमाण इत्येके स्कन्धादीनां कथकशः। चरितप्रतिपक्षस्तु धर्मस्कन्धोऽनुवर्णितः ॥२६॥ धर्मस्कन्ध का प्रमाण क्या है ? [४७] २६ ए. कुछ के अनुसार इसका वही प्रमाण है जो शास्त्र का प्रमाण है। अर्थात् धर्मस्कन्ध-संज्ञक अभिधर्मशास्त्र का प्रमाण जिसमें ६००० गाथाएं हैं। २६ बी. स्कन्धादि की एक-एक कथा एक-एक धर्मस्कन्ध है। एक दूसरे मत के अनु- सार स्कन्ध, आयतन, धातु,प्रतीत्यसमुत्पाद,आर्यसत्य, आहार, ध्यान, अप्रमाण, आरूप्य, विमोक्ष, अभिभ्वायतन, कृत्स्नायतन, बोधिपक्षिक, अभिज्ञा, प्रतिसंविद्, प्रणिधिज्ञान, अरणा आदि का एक-एक आख्यान (कथा) एक-एक धर्मस्कन्ध है। २६ सी-डी. वास्तव में प्रत्येक धर्मस्कन्ध एक एक चरित के विनेयजन के प्रतिपक्ष के लिए अनुवर्णित है । चरित के भेद से (२.२६) सत्त्वों की संख्या ८०,००० है। कोई रागचरित होते हैं, कोई द्वेषचरित, कोई मोहचरित, कोई मानचरित आदि । भगवत् ने ८०,००० धर्मस्कन्ध इन सत्वों के प्रतिपक्ष के लिए वर्णित किये हैं। तथान्येऽपि यथायोगं स्कन्वायतनधातवः। प्रतिपाद्या यथोक्तेषु संप्रधार्य स्वलक्षणम् ॥२७॥ यथा धर्मस्कन्ध रूपस्कन्ध या संस्कारस्कन्ध में गृहीत होते हैं २७. उसी प्रकार अन्य स्कन्ध, आयतन और धातुओं को उनके व्यवस्थापित स्वलक्षण को [४८] विचारकर पूर्वोक्त स्कन्ध, आयतन और धातुओं में यथायोग प्रविष्ट करना चाहिए। १ २ शास्त्रप्रमाण इत्येके व्याख्या ५२.२७] विभाषा ७४, १० : धर्मस्कन्धशास्त्र में ६००० गाथा है। तकाकुसु का विवरण देखिए, जे० पी० टी० एस० १९०५, पृ.११२. ८०,००० धर्मस्कन्ध अन्तहित हो गए हैं। केवल एक धर्मस्कन्ध अवशिष्ट है। [व्याख्या ५२.३२] 3 स्कन्धादीनां फर्यकशः॥ व्याख्या ५२.३४] यह युद्धघोष का व्याख्यान है, सुमंगल, १.२४ चरितप्रतिपक्षस्तु धर्मस्कन्योऽनुवर्णितः॥ व्याख्या ५३.५] [तथान्येऽपि यथायोग स्कंधायतनधातवः] । प्रतिपाद्या यथोक्तेषु सुविमृश्य स्वलक्षणम् ॥ (पातुसंग्रह में सप्तधातुकसूत्र, विभाषा ८५ पृष्ठ.४३७ : विद्याधातु, शुभधातु (?), आकाशानंत्ययातु ...... निरोधधातु) ४ 1