पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/५९

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अभिधर्मको है जो उभय से प्रतिहत होता है, अर्थात् शिशुमार, कर्कटक, मण्डूक, कैवर्त का चक्षु । एक चक्षु है जो दोनों में से किसी से भी नहीं प्रतिहत होता अर्थात् जो इन पूर्व प्रकारों में से नहीं है (यथा उनका चक्षु जिनको गर्भ में नियत मृत्यु होती है) 1 एक चक्षु है जो रात्रि से प्रतिहत होता है अर्थात् तित्तिल, उलूकादि का चक्षु । एक चक्षु है जो दिन से प्रतिहत होता है, अर्थात (चौर मनुष्य आदि को छोड़कर) प्रायेण मनुष्यों का चक्षु । एक चक्षु है जो रात्रि और दिन दोनों से प्रतिहत होता है, अर्थात् श्वान, शृगाल, अश्व, व्याघ्र, मार्जार आदि का चक्षु । एक चक्षु है जो रात्रि या दिन किसी से भी प्रतिहत नहीं होता, अर्थात् वह चक्षु जो पूर्ववणित आकार का नहीं है । सी, आलम्बन-प्रतिघात-चित्त-चैत्त का स्वालंबन के साथ आघात (२.६२ सी) । विषय और आलम्बन में क्या भेद है ? "विषय' से वह स्थान अभिप्रेत है जहां इन्द्रिय का दर्शन, श्रवण आदि कारित्र (=क्रिया, व्यापार) होता है। आलम्बन उसे कहते हैं जिसका चित्त-चैत्त से ग्रहण होता है । अतः चित्त-चत्त के आलंबन और विषय दोनों होते हैं किंतु चक्षु, श्रोत्रादि के विषय ही होते हैं। विषय और आलम्बन के प्रति इन्द्रिय और चित्त की प्रवृत्ति और कारिन को प्रतिघात क्यों कहते हैं ? क्योंकि विषय से परे इन्द्रिय की प्रवृत्ति या उसका कारित्र नहीं होता : इसलिए वह विषय से प्रतिहत होता है [लोक में कहते हैं कि सत्व कुड्य से प्रतिहत होता है क्योंकि उसके परे उसकी 'अप्रवृत्ति होती है ] 1 अथवा यहाँ 'प्रतिघात' का अर्थ 'निपात', "निपतन' है : यह इन्द्रिय की स्वविषय में प्रवृत्ति (= कारित्र) है । [५३] २. जब हम कहते हैं कि १० धातु सप्रतिध हैं, लतिघात स्वभाव हैं तो हमारा अभिप्राय आवरण-प्रतिघात से होता है । यह वह काय हैं जिनका अन्योन्य प्रतिघात हो सकता है, जो अन्योन्य सप्रतिष हैं। ३. प्रश्न है कि क्या विषय-प्रतिधातवश सप्रतिष धर्म आवरण-प्रतिधातवश भी सप्रतिध हैं। यह चतुष्कोटिक प्रश्न है : १. सप्त-चित्तधातु (१. १६ सी) और धर्मधातु का एक प्रदेश अर्थात् संप्रयुक्त (२. २३) केवल विषय-प्रतिधातवश सप्रतिध हैं; २. रूपादि (१.९) पंच विषय केवल आवरण-प्रतिधातवश सप्रतिध हैं; ३. चक्षुरादि (१. ९) पांच इन्द्रिय इन दोनों प्रतिघातों से सप्रतिघ हैं; ४. धर्मधातु का एक प्रदेश अर्थात् विप्रयुक्त (२. ३५) सप्रतिष नहीं है। प्रदन है कि क्या विषय-प्रतिघातवश सप्रतिध धर्म आलम्बन-प्रतिघातवश भी सप्रतिष है --प्रश्न के पश्चाद् भाग का ग्रहण कर उत्तर देते हैं (पश्चात्पादक) : जो धर्म आलम्बन-प्रति- घातवश सप्रतिष हैं वह विपय-प्रतिघातकश भी सप्रतिघ हैं। किन्तु ऐसे धर्म हैं जो आलम्वन- २ संयुक्त, ४ . २०१ से तुलना कीजिए: पुयुज्जनो चक्खुस्मि हञ्जति मनापामनाहि रूपेहि ।