पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/६५

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५० अभिधर्मकोश [६०] ५. वितर्क सदा विचार-सहगत होता है। यह समा अवितर्क है क्योंकि दो वितों का सहभाव असंभव है। किन्तु कामधातु और प्रथम ध्यान का विचार तीन प्रकारों में से किसी में भी अन्तर्भूत नहीं होता। वास्तव में यह सदा वितर्क से संप्रयुक्त होता है और यह कभी विचार-सहगत नहीं होता अर्थात् अविचार-वितर्क मात्र होता है क्योंकि दो विचारों का सहभाव संभव नहीं है। अतः हम कहेंगे कि जो भूमियाँ सवितर्क-सविचार (८.७) हैं उनमें चार प्रकार हैं: १. वितर्क-विचारवजित चित्त-संप्रयुक्त धर्म सवितर्क-सविचार हैं। २. वितर्क अवितर्क-सविचार है। ३. चित्त-विप्रयुक्त धर्म अवितर्क-अविचार हैं। ४. विचार अविचार-सवितर्क है। ३२ डी. अन्य धातु उभयजित हैं।' अन्य धातु १० रूपी धातु हैं । चित्त से संप्रयुक्त न होने के कारण वह अवितर्क-अविचार हैं। निरूपणानुस्मरणविकल्पनाविकल्पकाः। तौ प्रज्ञा मानसी व्यग्रा स्मृतिः सर्वैव मानसी ॥३३॥ किन्तु पाँच विज्ञानकाय सदा सवितर्क-सविचार होते हैं। वह अविकल्पक कैसे कहे जाते ३३ ए-बी. वह अविकल्पक हैं क्योंकि वह निरूपणाविकल्प और अनुस्मरण-विकल्प से रहित है। (कोश ३.१०९, ४.३९; सिद्धि, २८२, ३८९-३९१) बैभापिक के अनुसार विकल्प त्रिविध है : स्वभावविकल्प, निरूपणाविकल्प, अनुस्मरण- विकल्प। [६१] पाँच विज्ञानकायों प्रथम प्रकार का विकल्प होता है किन्तु अन्य दो विकल्प नहीं होते।' इसीलिए कहते हैं कि वह अविकल्पक हैं यथा एक पैर के घोड़े को अपादक १ शेपा उभयजिताः [च्या० ६४.१८] २ निरूपणानुस्मरणविकल्पावविकल्पकाः] इस वचन के अनुसार इन्हें अविकल्पक कहते हैं : चक्षुर्विज्ञान-समंगी नीलं विजानाति नो तु नीलमिति व्या० ६४. २२] (ऊपर पृ० २८, टिप्पणी १ देखिए) किल--यह वैभाषिक मत है। सूत्र से इसका समर्थन नहीं होता। वसुबन्धु के मत का व्याख्यान आगे २.३३ में है । वसुबन्धु और सौत्रान्तिक के लिए वितर्क और विचार चित्त मनोविज्ञान हैं। ४ विभाषा, ४२, १४ :स्वभाविकल्प वितर्क-विचार है। अनुस्मरणविकल्प भनोविज्ञान: संप्रयुक्त स्मृति है। निरूपणाविकल्प मनोविज्ञानविषयक असमाहित प्रज्ञा है । कामधातु में ५ विज्ञानकायों का केवल प्रथम प्रकार का विकल्प है। इनमें स्मृति होली है किन्तु अनुः स्मरणविकल्प नहीं होता, क्योंकि यह प्रत्यभिज्ञान में समर्थ नहीं हैं। इनमें प्रज्ञा होती है किन्तु निरूपणा-विकल्प नहीं होता क्योंकि यह निरूपणा में समर्थ नहीं हैं। न्यायानुसार स्वभावविकल्प का स्वभाव वितर्क है। र पांच विज्ञानकापों से प्रज्ञा और स्मृति संप्रयुक्त हैं किन्तु उनका परिभोग वहां न्यून है (संघ- भन)। 3