पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/६७

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५२ अभिधर्मको सात चित्तधातु (१.१६ सी), धर्मधातु (१.१५ सी) और शब्दधातु अनुपात्त हैं। ३४ डी . अन्य ९ दो प्रकार के हैं। वह कदाचित् उपात हैं, कदाचित् अनुपात्त है। १. चक्षुर्धातु आदि पाँच वर्तमान ज्ञानेन्द्रिय उपात्त हैं। अनागत और अतीत उपात्त नहीं हैं। [६३] चार आलम्बन--रूप, गन्ध, रस, स्प्रष्टव्य--जब वर्तमान होते हैं, जब इन्द्रियाभिन्न (इन्द्रियाविनिर्भाग) होते हैं तब वह उपात्त हैं। अन्य सर्व रूप, अन्य सर्व गन्ध, अन्य सर्व रस, अन्य सर्व स्प्रष्टन्य उपात्त नहीं हैं : यथा मूल को वर्जित कर जो काय या कार्यन्द्रिय से प्रतिबद्ध है, केश, रोम, नख और दन्त के रूप, वर्ण और संस्थान, पुरीष, मूत्र, लाला, कफ, रुधिरादि के वर्ण-संस्थान; पृथिवी, जल, अग्नि आदि के वर्ण-संस्थान । २. 'उपात्त' शब्द का क्या अर्थ है ?----जिसे चित्त-चैत्त अधिष्ठानभाव से उपगृहीत और स्वीकृत करते हैं वह 'उपात्त' कहलाता है। उपात्त रूप अर्थात् पाँच ज्ञानेन्द्रिय रूप। इस प्रकार वह रूप जो इन्द्रियाविनिर्भागी है चित्त से 'उपात्त' है, 'स्वीकृत' है : अनुग्रह-उपधात की अवस्था में चित्त और इस रूप के बीच जो अन्योन्य अनुविधान होता है उसका यह फल है। जिस रूप को अभिधर्म 'उपात्त' कहता है उसे लोक में सचेतन, सजीव' कहते हैं। स्पष्टव्यं द्विविधं शेषा रूपिणो नव भौतिकाः। धर्मधात्वेकदेशश्च संचिता दश रूपिणः ॥३५॥ कितने धातु महाभूत हैं? कितने उपादायरूप, भौतिकरूप हैं ? २ ४ अन्य नव द्विधा ।। व्या० ६५.२९] ' अभिधम्म (विभंग, पृ० ९६, धम्मसंगणि, ६५३, १२११, १५३४) में 'उपादिन्न' का यही अयं है। अभिधम्म के वर्तमान टीकाकार ‘उपादिन्न' का अनुवाद इश्यू आफ स्पिंग करते हैं। वह यह नहीं देखते कि उपादा-उपादायरूप, भौतिक है और इस प्रकार वह चड़ी गड़बड़ी करते हैं। इसके अतिरिक्त विभंग में धातुओं का वर्गीकरण अभिधर्म के समान नहीं है। (सुत्तविभंग, पृ० ११३ देखिए; महाव्युत्पत्ति, १०१, ५६; दिव्यावदान, पृ० ५४; वोधिचर्यावतार, ८.९७, १०१) संस्कृत ग्रंथों में भी कुछ अनिश्चितता है । यया मज्झिम ३.२४० में जो पितापुत्रसमागम (ऊपर पृ० ४९ टिप्पणी २ देखिए) में उद्धृत है, केश......पुरीष को अज्झत्तं पंच्चत्तं करायलमुपादिन्नं कहा है। किन्तु केश 'उपादिन्न' नहीं हैं। आध्यात्मिक रूप (मज्झिम, ३.९० देखिए) को उपात्त रूप से मिला दिया है। उपात्त रूप और मनस् को आश्रय का नाम देते हैं (२.५ देखिए)। यह तीथिकों का सूक्ष्म (लिंग) भूत, महाभूत; उपादायरूप, भौतिक; १.१२, २३-२४, २.१२, ५० ए, ६५ देखिए। भौतिक-भूते भव - भूतों से उत्पन्न शरीर है। २