पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/६९

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५४ अभिधर्मकोश गन्ध और रस के लिए है। किन्तु स्प्रष्टव्य के लिए सूत्र कहता है "स्प्रष्टव्य बाह्य आयतन, २ चार महाभूत, चार महाभूतों के उपादायरूप.... २. यह कहा जा सकता है कि ५ इन्द्रिय भूत हैं क्योंकि सूत्र- (संयुक्त, ११, १) वचन है कि "चक्षु में, मांसपिंड में, यत्किचित् खक्खट, खरगत है . 1" (विभाषा, १२७, पृ. ६६१) उत्तर । यहाँ सूत्र को इन्द्रिय इष्ट नहीं है किन्तु चक्षुरिन्द्रिय से अविनिर्भागवर्ती मांसपिंड का उपदेश है। [६६] हो सकता है । किन्तु गर्भावत्रान्तिसूत्र (पृ.४९ नोट २) के अनुसार “पुरुष षड्यातु का है : "पृथिवी धातु, अब्धातु, तेजोधातु, वायुधातु, आकाशधातु और विज्ञानधातु । . अतः गर्भावस्था में काय भूत है, भौतिक रूप नहीं है! नहीं, क्योंकि 'पुरुष षड्धातु का है' इस प्रथम वाक्य में सूत्र पुरुप के मूलसत्त्व-द्रव्य का संदर्शन कराना चाहता है, वह विस्तृत लक्षण नहीं दे रहा है। वास्तव में इसी सूत्र में पश्चात् उक्त है कि पुरुष स्पर्श (२.२४) नामक चैतसिक धर्म का षडाश्रय (स्पर्शायतन) अर्थात् पडिन्द्रिय है। पुनः 'पुरुष षड्धातु का है' इस लक्षण का अक्षरार्थ लेने से चैत्तों के (२.२४, ३४) अभाव का प्रसंग होगा क्योंकि चैत्त विज्ञान-धातु में, जो चित्त है, संगृहीत नहीं हैं। क्या यह कहेंगे कि चैत्त चित्त हैं और इसलिए विज्ञान-धातु में संग्रहीत हैं ? यह युक्त नहीं होगा क्योंकि सूत्र-वचन है कि "वेदना और संज्ञा चैत्त धर्म है" अर्थात् चैतसिक धर्म है। चित्त-निश्रित धर्म हैं और सूत्र ‘सराग चित्त' का भी उल्लेख करता है। अतः राग जो वैत्त है चित्त नहीं है (७.११ डी)। अतः यह सिद्ध है कि हमारे दिए हुए लक्षण (१.३५ ए-सी) यथार्थ हैं।' २ चक्षुभिलो आध्यात्मिक आयतनं चत्वारि महाभूतान्युपादाय रूपप्रसादो रूपी अनिदर्शन सप्रतिघम् ।......मनो भिक्षो आध्यात्मिकं आयतनं अरूप्यनिदर्शनम् अप्रतिघम् । रूपाणि भिक्षो बाह्यमायतनं चत्वारि महाभूतान्युपादाय रूपि सनिदर्शनम् सप्रतिघम् । स्प्रष्टव्यानि भिक्षो वाहमायतनं चत्वारि महाभूतानि चत्वारि च महाभूतान्युपादाय रूपि अनिदर्शनम् सप्रतियम् । धर्मा भिक्षो बाह्यमायतनम् एकादशभिरायतनैरसंगृहीतमरूपि अनिदर्शनमप्रतिघम् । व्या० ६६.२५] २.५ देखिए । प्रथम चार धातु (पृथिवी ...... वायु) 'सौल सत्त्वद्रव्य हैं क्योंकि इन्द्रियों की उत्पत्ति इन धातुओं से होती है। विज्ञानधातु या मनोधातु 'मूल' है क्योंकि इससे मनः स्पर्शापतन को उत्पत्ति होती है । अथवा प्रथम चार धातु मूल है क्योंकि उनसे भौतिक रूप की उत्पत्ति होती है । विज्ञानधातु मूल है क्योंकि इससे चैत (चतसिक) उत्पन्न होते हैं। २ अतः प्रथम पांच 'स्पर्रयतन', ५ ज्ञानेन्द्रिय 'भौतिक रूप' हैं : अन्यथा वह "पुरुष पञ्धा तुक है" इस लक्षण के अन्तर्गत होंगे। अभिधम्म (पैमसंगणि, ६४७) के अनुसार उपादायरूप स्प्रष्टव्यधातु नहीं है । संघभत्र इस मत का प्रतिषेध करते हैं। यह कहते हैं कि मूर्ख स्थविर का पाहना है कि स्प्रष्टव्यधातु में उपादापटप नहीं संग्रहीत है (संघभद्र, ४, पृ. ३५२, कालम ३)-डाकुमेण्ट्स आफ अभिधर्म में सूत्रों की प्रामाणिकता पर चियाद देखिए। १ 3