पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/७७

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अभिधर्मकोश धर्मा नहीं हैं तव वह तत्सभाग हैं। इसी प्रकार अन्य विज्ञान-विषयों के बारे में उनके अपने- अपने इन्द्रिय और कारित्र को सूचित कर कहना चाहिए। ४. जो चक्षुर्धातु सभाग या तत्सभाग है वह सबके लिए सभाग या तत्सभाग है, अर्थात् उसके लिए जिसका वह चक्षु है तथा दूसरों के लिए । अन्य इन्द्रियों के लिए भी इसी प्रकार समझना चाहिए। किन्तु रूप उसके लिए सभाग है जो देखता है, उसके लिए तत्सभाग है जो नहीं देखता है। वास्तव में रूप जिसको एक पुद्गल देखता है अनेकों से देखा जा सकता है, यथा चन्द्र, दृश्य, मल्लयुद्ध । किन्तु दो पुद्गल एक ही इन्द्रिय से नहीं देखते । अतः चक्षुर्धातु के सामान्य [७७] न होने से यह पुद्गल की दृष्टि से सभाग या तत्सभाग कहलाएगा : चक्षुर्धातु सभाग है जब यह रूप देखता है; तब भी जब कि इसने दूसरा रूप नहीं देखा है, नहीं देखता है, नहीं देखेगा। इसके विपरीत रूप सामान्य है : अनेक पुद्गलों की दृष्टि से यह सभाग और तत्सभाग कहलाएगा। जो इसे देखते हैं उनके लिए यह सभाग है, जो इसे नहीं देखते हैं उनके लिए यह तत्सभाग है। रूप के समान शब्द, गन्ध, रस और स्पष्टव्य हैं।" शब्द के लिए ऐसा कह सकते है क्योंकिशब्द का ग्रहण रूप के समान दूरसे होता है और अनेक पुद्गलों से हो सकता है (१.४३ सी-डी) । किन्तु गन्ध, रस और स्प्रष्टव्य की उपलब्धि दूर से नहीं होती। उनका ग्रहण केवल तभी होता है जब वह इन्द्रिय को प्राप्त होते हैं, स्वघ्राणादिक में प्रवेश करते हैं। इसलिए एक से गृहीत गन्ध दूसरे से गृहीत नहीं होता । अतः यह विषय साधारण नहीं हैं और सभाग, तत्सभाग के लिए हमें इन्हें इन्द्रियों से अनुगत करना चाहिए, इनका अतिदेश न्याय्य है : जब वह एक सत्त्व के लिए सभाग हैं तव वह सबके लिए सभाग है १ । हमारा उत्तर है कि हम इन विषयों को साधारण मानते हैं क्योंकि वह साधारण हो सकते हैं। वास्तव में यह संभव है कि वही गन्ध-एक ही गन्ध का परमाणु-कलाप-जो एक में प्राण-विज्ञान उत्पन्न करता है दूसरे से भी गृहीत हो। किन्तु इन्द्रियों के लिए ऐसा नहीं होता। अतः गन्ध, रस और स्पष्टव्य को रूप भौर शब्द से अनुगत करना चाहिए। ५. पड़ विज्ञानधातु सभाग हैं यदि वह उत्पत्तिधर्मा हैं। वह तत्सभाग हैं यदि वह अनुत्पत्ति-धर्मा हैं। मनोधातु के समान । ६. सभाग, तत्तभागका क्या अर्थ है ? [७८] 'भाग' से इन्द्रिय, विषय और विज्ञान का आश्रय, विषय, आश्रयिभाव से अन्योन्य भजन समझना चाहिए। अथवा 'भाग' का अर्थ कारित्र-भजन है : चक्षुरादि का ' विभाषा, ७१.९--तीन मत-~पया दूसरे के चक्षु से कोई रूप देख सकता है ?--इस मत फा कौन है ?-~-यदि दूसरे के चल से नहीं देखा जा सकता तो एक पुद्गल का चक्षु अन्य पुद्गलों के सम्बन्ध में सभाग कैसे कहला सकता है? क्योंकि चक्षु का कारित्र नियत है : देखना इसका कारित्र है । जब चक्षु अपना कारिज कर के निरुद्ध हो जाता है तब उसे सभाग फहते हैं। न उस पुद्गल के लिए, न दूसरे के लिए, यह 'सभाग' नाम बदलता है।