पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/९४

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प्रथम कोशंस्थानः धातुनिर्देश कभी मन-इन्द्रिय काय, धर्मधातु और मनोविज्ञान के भूमि का होता है; कभी यह अधर या ऊर्ध्व होता है। पंचभूमिक-कामावचर और चतुर्व्यानिक-काय में मनोधातु, धर्मधातु [१००] और मनोविज्ञान, समापत्ति काल में या उपपत्ति काल में, सर्वभूमिक होते हैं- सव भूमियां प्रत्येक अवस्था में समान नहीं होती। समापत्ति कोशस्थान में (८.१९ सी-डी) इसका व्याख्यान होगा । हम यहां इसका वर्णन संक्षेप के लिए नहीं करते ; लाभ कम है, कष्ट अधिक है। पंच वाह्या द्विविज्ञेया नित्या धर्मा असंस्कृताः। धर्मार्थमिन्द्रियं ये च द्वादशाध्यात्मिकाः स्मृताः॥४८॥ १८ धातु और ६ विज्ञान हैं। किस विज्ञान से कौन धातु जाना जाता है ? ४८ ए . ५ वाह्यधातु दो विज्ञानों से विज्ञेय हैं।' रूप, शब्द, गन्ध, रस और स्प्रष्टव्य चक्षुर्विज्ञान, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा और काय. विज्ञान से यथाक्रम अनुभूत होते हैं। यह सब मनोविज्ञान से विज्ञेय हैं । अतः इन बाह्य धातुओं में से प्रत्येक दो विज्ञानों से विज्ञेय है। शेष १३ धातु पंच विज्ञानकाय के विषय नहीं हैं; अतः वह एक मनोविज्ञान से विज्ञेय हैं। कितने धातु नित्य हैं? कोई धातु सर्वात्मना नित्य नहीं है। किन्तु ४८ वी . असंस्कृत नित्य धर्म हैं। असंस्कृत (१.५ वी) धर्मधातु (१.१५ सी) में संगृहीत हैं। अतः धर्मधातु का एक देश नित्य है। कितने धातु इन्द्रिय हैं (२.१) ? ४८ सी-डी . १२ आध्यात्मिक धातु और धर्मधातु का एक देश इन्द्रिय है। [१०१] सूच' में २२ इन्द्रिय उक्त हैं : १ . चक्षुरिन्द्रिय, २. श्रोत्रेन्द्रिय, ३ . घ्राणेन्द्रिय, ४. जिह्वेन्द्रिय, ५ . कायेन्द्रिय, ६ . मन-इन्द्रिय, ७ . पुरुपेन्द्रिय, ८. स्त्रीन्द्रिय, ९. जीवितेन्द्रिय, १०. सुखेन्द्रिय, ११ . दुःखेन्द्रिय, १२ . सौमनस्येन्द्रिय, १३ . दौर्मनस्येन्द्रिय, १४. उपेक्षेन्द्रिय, . १ पंच वाह्या द्विविज्ञेयाः [व्या० ९०.१८] २ नित्या धर्मा असंस्कृताः। [व्या० ९०.२२] असंस्कृत नित्य हैं क्योंकि उनका अध्व-संचार नहीं है (अध्वसंचाराभावात्, ५.२५)-- असंस्कृत, नित्य, ध्रुव (४.९) और द्रव्य (१.३८) समानार्थक हैं। 3 धर्माध इन्द्रियं ये च द्वादशाध्यात्मिकाः स्मृताः॥ [व्यास्था ९०.२४] एक दूसरे पाठ के अनुसार (केचित् पठन्ति): धर्मार्धम् [व्या० ९१.९] धम्मसंगणि, ६६१ देखिए। १ व्याख्या में ब्राह्मणजाति श्रोण और भगवत् का संवाद उद्धृत है : इन्द्रियाणीन्द्रियाणि भो गौतम उच्यन्ते । कति भो गौतम इन्द्रियाणि : फियता चेन्द्रियाणां संग्रहो भवति ...... [व्या० ९०.२९] .